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________________ नैतिकता की आधारशिला : काम परिष्कार अतीत से हमारा सम्बन्ध है। वर्तमान में हम श्वास ले रहे हैं। वह अतीत हमारे वर्तमान पर हावी है । 'काम' या 'कामना' अतीत का एक संस्कार है। प्रत्येक प्राणी में कामना होती है । एक भी प्राणी ऐसा नहीं मिलता, जिसमें कामना न हो । काम एक पुरुषार्थ है। मनुष्य का एक लक्षण है-कामना या इच्छा । इच्छा के द्वारा जाना जा सकता है कि यह प्राणी है और विकसित इच्छा के द्वारा जाना जा सकता है कि यह मनुष्य है। चेतना का एक लक्षण है--इच्छा । जैन तर्क शास्त्र में यह सिद्ध किया गया है कि वायु सजीव है, सचेतन है । प्रश्न हुआ---हवा को सजीव कहने का प्रबल तर्क क्या है ? आचार्यों ने कहा- हवा सजीव है, क्योंकि यह तिरछी गति करती है। यह जीव या सचेतन का एक लक्षण है । अचेतन तिरछी गति नहीं कर सकता । तिरछी गति इच्छा-प्रेरित होती है। इच्छा स्वतंत्र चेतना वाला ही कर सकता है। जिसमें यह स्वतंत्र चेतना नहीं होती वह तिरछी गति नहीं कर सकता। पत्थर को ऊपर फेंको। वह सीध में ऊपर जाएगा। वह अपनी इच्छा के अनुसार गति नहीं कर सकता। उसकी गति नियत दिशा में ही होगी। हवा सचेतन है । उसमें स्वतंत्र इच्छा है। वह तिरछी गति कर सकती है। जिसमें इच्छा-प्रेरित गति होती है, वह सजीव होता है। निर्जीव में इच्छा प्रेरित गति नहीं होती । 'इच्छा' प्राणी होने का लक्षण है । इच्छा का विकास विकसित चेतना का लक्षण है। जीवन के चार आयतन हैं-काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष । काम पहला आयतन है। काम भीतर रहता है। उसकी अभिव्यक्तियां बाहर में होती हैं । 'काम' की जैसी अभिव्यक्ति होती है, वैसी आकृति बन जाती है, वैसी प्रकृति बन जाती है और वैसा ही श्वास बन जाता है। भीतर काम का एक चक्र चलता रहता है और उसके आधार पर सारे परिवर्तन घटित हो जाते हैं। जिस व्यक्ति ने 'काम' का परिष्कार नहीं किया, वह अशांति, असंतोष, अप्रसन्नता और अस्थिरता का जीवन जीएगा। जिस व्यक्ति ने 'काम' का परिष्कार कर लिया, वह शांति, संतोष, प्रसन्नता और स्थिरता का जीवन जीएगा। प्रश्न है परिष्कार का । इस शरीर में रहने वाला, इन्द्रिय और मन के जगत् में जीने वाला कोई भी व्यक्ति सर्वथा 'अकाम' बन जाए, सर्वथा कामना से मुक्त हो जाए, यह कल्पना नहीं की जा सकती। किन्तु काम के परिष्कार की कल्पना की जा सकती है। यह सोचा जा सकता है कि किस व्यक्ति ने कितना परिष्कार किया है, कितना शोधन किया है। शोधन का सिद्धान्त संभव बनता है, 'अकाम' का सिद्धांत सम्भव नहीं बनता । अकाम की स्थिति वीतराग की स्थिति है । जब वह स्थिति प्राप्त होती है, तब व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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