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अवचेतन मन के सम्पर्क
होती । अनुभव पर कोई जाना नहीं चाहता और लड़ाई को छोड़ना नहीं चाहता, यह एक समस्या है । इन सब समस्याओं से निपटने का उपाय हैअनुभव का जागरण । अनुभव के जागते ही सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं । आचार्य अमृतचन्द्र ने 'समयसार कलश' (श्लोक 8 ) में लिखा है'उदयति न नयश्रीरस्तमेति प्रमाणं, क्वचिदपि च न विद्मो याति निक्षेपचक्रम् । किमपरमभिदध्मो धाम्नि सर्वकषेऽस्मिन्, अनुभवमुपयाते भाति न द्वैतमेव ॥ — जब अनुभव जागता है तब न वाद काम देता है, न प्रमाण काम देता है, न निक्षेप काम देता है । ये सारे वाद और प्रमाण तथा निक्षेप न जाने कहां छिप जाते हैं । कहीं द्वैत लगता ही नहीं ।
ध्यान का सबसे बड़ा परिणाम है - अनुभव का जागरण । जब ध्यान के द्वारा अनुभव नहीं जागता तो मानना चाहिए कि ध्यान निष्पत्ति पूरी नहीं हुई है । ध्यान की साधना करने वाले व्यक्ति में कुछ न कुछ अनुभव जागता ही है । अनुभव का जागना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है ।
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