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अवचेतन मन से सम्पर्क
लोग ठगे जाते हैं। झूठ पर हमारा विश्वास जम गया, पर क्यों जमा ? कहा तो यह जाता है कि झूठ बोलने वाले का विश्वास नहीं होता। यह कहते भी जाते हैं, इसकी दुहाई भी देते हैं और झूठ पर विश्वास भी जमाए रखते हैं । बड़ी विचित्र स्थिति है। यह दोहरे व्यक्तित्व की प्राप्ति ही तो भौतिक व्यक्तित्व का परिणाम है। हमें दुहाई कुछ दी जाती है और आचरण कुछ और ही होता है। ये सारी समस्याएं भौतिक व्यक्तित्व की समस्याएं हैं। आध्यात्मिक व्यक्तित्व यथार्थ के आधार पर खड़ा होता है, उसमें ये समस्याएं नहीं होती। आध्यात्मिक न झूठ का सहारा लेता है और न किसी को धोखा देता है । वह सत्य के साथ इतना जुड़ा हुआ होता है कि जहां भी सत्य का अतिक्रमण होता है, वहां से अपने आपको पीछे सरका लेता है। लोग अनुभव कर सकते हैं कि ये सारी काल्पनिक बातें हैं। सचाई से कभी जीवन चल सकता है ? सारी कल्पना ही कल्पना है। आदमी में मूढ़ता इतनी गहरा गई है कि जो काल्पनिक है, उसे यथार्थ मान रहा है और जो यथार्थ है, उसे अस्वाभाविक या काल्पनिक मान रहा है। यह अभिप्राय या विपर्यय एक-दो व्यक्तियों का नहीं है, समूचे युग का है। आज के युग का दृष्टिकोण ही उल्टा हो गया। भौतिक व्यक्तित्व की देन है मूढ़ता। मूढ़ता में जीना ओर मूढ़ता को पालते जाना, यह भौतिकवादी दृष्टि का लक्षण है। यदि यह दृष्टिकोण न हो तो भौतिकवाद ही समाप्त हो जाए।
आज यह आस्था बन गई है कि सचाई से कुछ हो नहीं सकता। सचाई से काम नहीं चल सकता । झूठ से काम चलता है। इसी आधार पर जीवन की सारी प्रक्रिया चलती है। आज का व्यक्ति माता-पिता से झूठ बोल सकता है, भाई और मित्र से झूठ बोल सकता है, पत्नी से झूठ बोल सकता है, धर्म गुरुओं को भी वह नही छोड़ता। वहां भी झूठ का व्यवहार कर लेता है। क्योंकि उसकी आस्था है-झूठ के सहारे दो मिनट में काम बन जाता है और सत्य से काम ही नहीं बनता। ये तर्क देने वालों ने कभी नहीं सोचा कि झठ से काम बनता है या झूठ पाल रहे हो, इससे काम बनता है ? तुम भी झूठ पाल रहे हो और काम बनाने वाला भी झूठ पाल रहा है। दोनों झूठ पाल रहे हो इसलिए काम बनता है । आदमी बेईमानी को छिपाना चाहता है, बुराई करना चाहता है और तब करता है, जब झूठ का सहारा मिल जाए।
___ आध्यात्मिक व्यक्तित्व में चिंतन की धारा बदल जाती है। वह कभी गलत काम करना ही नहीं चाहता। उसे झूठ के सहारे की कभी जरूरत ही नहीं होती। झूठ का सहारा तब चाहिए जब कोई गलत काम को संभालना हो या उसे पालना हो । जो व्यक्ति यथार्थ की भूमिका पर ही काम करता है। वह सोचता है-काम बने या न बने, मुझे झूठ का सहारा कभी नहीं लेना है। झूठ के सहारे जो काम बनता है, वह काम भी झूठा ही होता है ।
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