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यथार्थवादी दृष्टिकोण
११३ मरने वाला भी रोता है, बिलखता है ? वह भी तो यहां से बिछुड़ा है । पर मरने वाला रोता नहीं। दूसरे इसलिए रोते हैं कि उन्होंने मान लिया था, यह मेरा है। यह सत्य का अतिक्रमण है, सचाई को झुठलाने का प्रयत्न है । यह शाश्वत नियम है--सम्बन्धों की इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है । यदि कोई किसी का होता तो कोई किसी को छोड़कर नहीं जाता। हम यह अनादिकाल से अनुभव कर रहे हैं कि व्यक्ति चला जाता है, धन चला जाता है, सत्ता और संपदा चली जाती है । यदि ये यथार्थ होते, संबंध शाश्वत होते तो कोई किसी को छोड़कर कभी नहीं जाता।
आदमी दुःखी क्यों होता है ? यथार्थ में देखें तो प्रिय व्यक्ति के चले जाने का दुःख नहीं है किन्तु जो 'ममत्व' और 'मेरापन' पाल रखा था, उसका दुःख है । यह 'मेरा' था—इसका दु:ख है। जहां असत्य के आधार पर जीवन चलता है, वहां समस्याएं ही समस्याएं उभरती रहती हैं। हमें सचाई के निकट रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
___ ध्यान की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है--सत्य की दिशा में प्रस्थान, सत्य के निकट जीने का अभ्यास । सत्य को झुठलाने का प्रयत्न नहीं करना ध्यान की उपलब्धि है । ध्यान के अभ्यास से गुजरने के बाद भी यदि यथार्थवादी दृष्टिकोण नहीं बना तो मान लेना चाहिए कि ध्यान सधा नहीं। ध्यान की निष्पत्ति है--सचाई का जीवन जीना । जब आदमी सचाई का जीवन नहीं जीता है तब व्यावहारिक समस्याएं बहुत पैदा हो जाती हैं।
एक लड़के ने मां के लिए एक सुन्दर साड़ी भेजी। उसने पत्र में लिखा—इस साड़ी के सौ रुपय लगे हैं। साड़ी मनपसन्द थी। उसे लगा, ऐसी साड़ी के सौ रुपय अवश्य लगे होंगे। पास-पड़ोस की औरतें आईं । बातचीत में उसने अपने लड़के द्वारा भेजी साड़ी का जिक्र किया। दिखाई । दूसरी दूसरी औरतों ने मूल्य पूछा। उन्हें जानकर यह आश्चर्य हुआ कि इतनी बढ़िया और सुन्दर साड़ी सौ रुपयों में कैसे आई ? एक बहिन बोली-मैं इसके ढाई सौ रुपए देती हैं, यह साड़ी मुझे दे दो। उसने दे दी। डेढ सौ रुपए की कमाई हुई है, यह सोचकर वह प्रसन्न हो गई। - कुछ दिनों बाद लड़का आया। उसने पूछा-मां ! साड़ी पसन्द तो आई होगी? तूने उसका उपभोग किया या नहीं ? मां बोली-मैंने तो ढाई सौ रुपयों में बेच दी। लड़का बोला-मां ! तूने अन्याय कर डाला । वह एक एक हजार रुपयों की साड़ी थी। मां ने कहा-अरे, तूने तो लिखा था कि वह सौ रुपयों की साड़ी है । बेटा बोला- मैंने डर के मारे लिखा था। मुझे भय था कि मां कहेगी-इतना खर्च क्यों किया?
असत्य के आधार पर चलने वाला जीवन किस प्रकार धोखा खाता है इसका यह मार्मिक उदाहरण है । न जाने ऐसा धोखा कौन नहीं खाता । बहुत
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