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________________ भाव और अध्यात्मविद्या जीवन की सफलता का सूत्र है-अनुशासन । व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन-दोनों में उसकी अपेक्षा होती है । जिस व्यक्ति के जीवन में अनुशासन नहीं होता, वह अपने आप में कभी सुखी नहीं होता। __ अनुशासन एक प्राकृतिक व्यवस्था है। हमारे शरीर में एक अनुशासन है। आदमी नींद लेता है, जागता है। निद्रा और जागति-दोनों का अपना अनुशासन है, नियम है। 'हाइपोथेलेमस' नींद का भी कन्ट्रोल करता है और जागरण का भी कन्ट्रोल करता है । हमारे शरीर में अनेक नियंत्रण हैं, अनुशासन हैं, इसलिए भिन्न-भिन्न अवयव होने पर भी कार्य ठीक चल रहा है। हाथ, पैर, आंख, कान-कितनों का समवाय मिला है । यदि अनुशासन न हो तो ये सारे इतने बिखर जाएं कि आदमी आदमी ही न रहे। इतने अवयवों के बीच जो आदमी आदमी बना हुआ है, एक बना हुआ है, वह अनुशासन के कारण ही बना हुआ है । अनुशासन जीवन का स्वाभाविक विधान है। - जगत् के सभी पदार्थों के साथ अनुशासन जुड़ा हुआ है। मनुष्य सभी प्राणियों में अधिक समझदार है, इसलिए उसके साथ दो अनुशासन जुड़े हुए हैं-स्वाभाविक अनुशासन और आरोपित अनुशासन । आरोपित अनुशासन बहुत काम नहीं देता । प्रकाश में काम देता है, अंधकार में काम नहीं देता। दो व्यक्तियों के बीच में काम देता है, अकेले में काम नहीं देता। वह बुराई को मिटाता नहीं, उसे और अधिक गहराई में ले जाता है । उसमें यह होता है कि बुराई करो पर किसी के सामने मत करो, छुप कर करो। यह उसकी निष्पत्ति है । जो अनुशासन स्वाभाविक होता है, स्वभावतः सिद्ध होता है, वहां अंधकार और प्रकाश का, परिषद् और अकेले का, प्रश्न नहीं उभरता । वहां एकरूपता, एकरसता, समस्वरता होती है । कोई अन्तर नहीं आता। वह अनुशासन है अध्यात्म का अनुशासन । अध्यात्मविद्या का विकास मानव का सर्वोपरि विकास है। जिन लोगों ने अध्यात्म की खोज की, आज तक के इतिहास में वह सबसे बड़ी खोज है। जितनी वैज्ञानिक खोजें हैं, वे सारी दृश्य की खोजें हैं, द्रष्टा की खोजें नहीं हैं। सारा अन्वेषण हुआ है, पौद्गलिक जगत् पर । उसे हम ओब्जेक्टिव खोज कह सकते हैं। सब्जेक्ट आज भी उतना ही अज्ञात है, जितना पहले था। उसकी पर्याप्त खोज नहीं हुई है। विज्ञान इस दिशा में कुछ प्रयत्न कर रहा है परन्तु अध्यात्म के आचार्यों ने जो खोज की, उसका आज भी स्वतंत्र मूल्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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