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________________ जैन साहित्य है। जिन-वाणी पर उनकी अटूट श्रद्धा थी। विचार-भेद की दुनिया के लिए वे तार्किक थे। साहित्य, संगीत, कला, संस्कृति-ये उनके व्युत्पत्ति-क्षेत्र थे । उनका सर्वतोमुखो व्यक्तित्व उनके युग-पुरुष होने की साक्षी भर रहा है। हिन्दी साहित्य हिन्दी का आदि-स्रोत अपभ्रंश है। विक्रम की दसवीं शताब्दी से जैन विद्वान् इस ओर झुके। तेरहवीं शती में आचार्य हेमचंद्र ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण सिद्ध-हेमशब्दानुशासन में इसका भी व्याकरण लिखा। उसमें उदाहरण-स्थलों में अनेक उत्कृष्ट कोटि के दोहे उद्धृत किए हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर, दोनों परंपराओं के मनीषी इसी भाषा में पुराण, महापुराण, स्तोत्र आदि लिखते ही चले गए। महाकवि स्वयम्भू ने पद्मचरित लिखा। राहुलजी के अनुसार तुलसी रामायण उससे बहुत प्रभावित रहा है । राहुलजी ने स्वयम्भू को विश्व महाकवि माना है। चतुर्मुखदेव, कवि रइधु, महाकवि पुष्पदन्त के पुराण अपभ्रंश में हैं। योगीन्द्र का योगसागर और परमात्मप्रकाश संत-साहित्य के प्रतीक-ग्रंथ हैं। हिन्दी के नये-नये रूपों को जैन-साहित्य अपना योग देता रहा। पिछली चार-पांच शताब्दियों में वह योगदान उल्लासवर्धक नहीं रहा । इस शताब्दी में फिर जैन-समाज इस ओर जागरूक हैऐसा प्रतीत हो रहा है। अनेक जैन आचार्य, मुनि और बहुश्रुत मनीषी नए-नए साहित्य का सजन कर हिन्दी साहित्य भंडार को भर रहे हैं । तेरापंथ के आचार्यश्री तुलसी तथा अनेक मुनियों ने इस दिशा में अभूतपूर्व योगदान किया है । जैन आगमों में हिन्दी में व्याख्यायित करने का उनका संकल्प क्रियान्वित हो रहा है और साथ-साथ सामयिक विषयों पर शताधिक ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। आज भी मनीषी मुनि इस ओर गतिशील हैं। तेरापंथ द्विशताब्दी, कालजन्म शताब्दी तथा जयाचार्य निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में राजस्थानी और हिन्दी भाषा के अनेक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। जैन ध्यान-योग की विलुप्त परंपरा का संधान करने वाले अनेक ग्रंथ हिन्दी में प्रकाशस्तंभ बन चुके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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