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भगवान् महावीर की उत्तरवर्ती परम्परा तेरापंथ
स्थानकवासी संप्रदाय के आचार्य रुघनाथजी के शिष्य 'सन्त भीखणजी' [आचार्य भिक्षु] ने विक्रम संवत् १८१७ में तेरापंथ का प्रवर्तन किया। आचार्य भिक्षु ने आचार-शुद्धि और संगठन पर बल दिया। एकसूत्रता के लिए उन्होंने अनेक मर्यादाओं का निर्माण किया, शिष्य-प्रथा को समाप्त कर दिया। थोड़े ही समय में एक आचार्य, एक आचार और एक विचार के लिए तेरापंथ प्रसिद्ध हो गया। आचार्य भिक्षु आगम के अनुशीलन द्वारा कुछ नये तत्त्वों को प्रकाश में लाए। सामाजिक भूमिका में उस समय वे कुछ अपूर्व-से लगे। आध्यात्मिक दृष्टि से वे बहुत ही मूल्यवान् हैं। कुछ तथ्य वर्तमान समाज के पथ-दर्शक बन गए हैं। दिगम्बर
दिगम्बर-परंपरा भी एक रूप नहीं रही। वह अनेक संघों में विभक्त हो गई। उसमें मूल पांच संघ हैं-मूल संघ, यापनीय संघ, द्राविड़ संघ, काष्ठा संघ और माथुर संघ । वर्तमान में उसके कई सम्प्रदाय हैं --तेरापंथ, बोसपंथ, तारणपंथ आदि ।
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