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________________ जैन परम्परा का इतिहास 'भगवन् ! देवताओं का आना, आकाश-विहार, छत्र-चामर आदि विभूतियां ऐन्द्रजालिक व्यक्तियों के भी हो सकती हैं। आपके पास देवता आते थे | आप छत्र, चामर आदि अनेक यौगिक विभूतियों से सम्पन्न थे । इसलिए महान् नहीं । आप इसलिए महान् हैं कि आपने सत्य को अनावृत किया था ।' 1 १३४ इस आचार्य हेमचन्द्र ने भी चिन्तन की इसी धारा को विकसित किया। उन्होंने कहा - 'आपके चरण कमल में इन्द्र लुठते थे, बात का दूसरे दार्शनिक खण्डन कर सकते हैं या अपने इष्टदेव को भी इन्द्रपूजित कह सकते हैं, किन्तु आपने जो यथार्थवाद का निरूपण किया, उसका वे निराकरण कैसे करेंगे ? ' प्राचीनता और नवीनता पुरानी और नयी पीढ़ी का संघर्ष बहुत पुराना है । पुराने व्यक्ति और पुरानी कृति को मान्यता प्राप्त होती है । नये व्यक्ति और नयी कृति को मान्यता प्राप्त करनी होती है । मनुष्य स्वभाव से इतना उदार नहीं है कि वह सहज ही किसी को मान्यता दे दे । नयी पीढ़ी में मान्यता प्राप्त करने की छटपटाहट होती है और पुरानी पीढ़ी का अपना अहं होता है, अपना मानदण्ड होता है. इस - लिए वह नयी पीढ़ी को नये मानदण्डों के आधार पर मान्यता देने में सकुचाती है। यह संघर्ष साहित्य, आयुर्वेद और धर्म-सभी क्षेत्रों में रहा है । 'पुराना होने मात्र से सब कुछ अच्छा नहीं होता' - महाकवि कालिदास का यह स्वर दो पीढ़ियों के संघर्ष से उत्पन्न स्वर है । उनके काव्य और नाटक के प्रति पुराने विद्वानों ने उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया तब उन्हें यह कहने के लिए बाध्य होना पड़ा'पुराना होने मात्र से कोई काव्य प्रकृष्ट नहीं होता और नया होने मात्र से कोई काव्य निकृष्ट नहीं होता । साधुचेता पुरुष परीक्षा के बाद ही किसी काव्य को प्रकृष्ट या निकृष्ट बतलाते हैं और जो मूढ होता है, वह बिना सोचे-समझे पुराणता का गीत गाता रहता है ।' आचार्य वाग्भट्ट ने अष्टांगहृदय का निर्माण किया । आयुर्वेद के धुरंधर आचार्यों ने उसे मान्य नहीं किया । वाग्भट्ट को भी पुरानी पीढ़ी के तिरस्कार का पात्र बनना पड़ा । उसी मनःस्थिति में उन्होंने यह लिखा- 'वायु की शांति के लिए तैल, पित्त की शांति के लिए घी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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