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________________ जैन परम्परा का इतिहास कार्य कारणवाद या एक के चले जाने पर दूसरे के विकसित होने की कहानी है। कुलकर सात हुये हैं । उनके नाम हैं-विमलवाहन, चक्षुष्मान् यशस्वी, अभिचन्द्र, प्रसेनजित, मरुदेव व नाभि । राजतन्त्र और दण्डनीति कुलकर व्यवस्था में तीन दण्ड-नीतियां प्रचलित हुईं। पहले कुलकर विमलवाहन के समय में 'हाकार' नीति का प्रयोग हुआ। उस समय के मनुष्य स्वयं अनुशासित और लज्जाशील थे । 'हा! तूने यह क्या किया'-ऐसा कहना गुरुतर दण्ड था।। दूसरे कुलकर चक्षुष्मान् के समय भी यही नीति चली। तीसरे और चौथे-यशस्वी और अभिचन्द्र कुलकर के समय में छोटे अपराध के लिए 'हाकार' और बड़े अपराध के लिए 'माकार' [मत करो नीति का प्रयोग किया गया। पांचवें, छठे और सातवें-प्रसेनजित, मरुदेव और नाभि कुलकर के समय में 'धिक्कार' नीति चली। छोटे अपराध के लिए 'हाकार' मध्यम अपराध के लिए 'माकार' और बड़े अपराध के लिए 'धिक्कार' नीति का प्रयोग किया गया। उस समय के मनुष्य अतिमात्र ऋजु, मर्यादा-प्रिय और स्वयं-शासित थे । खेद-प्रदर्शन, निषेध और तिरस्कार-ये मृत्यु-दण्ड से अधिक होते। अभी नाभि का नेतृत्व चल ही रहा था। युगलों को जो कल्पवृक्षों से प्रकृतिसिद्ध भोजन मिलता था, वह अपर्याप्त हो गया। जो युगल शांत और प्रसन्न थे, उनमें क्रोध का उदय होने लगा। वे आपस में लड़ने-भगड़ने लगे। धिक्कार नीति का उल्लंघन होने लगा। जिन यूगलों ने क्रोध, लड़ाई जैसी स्थितियां कभी न देखीं और न कभी सुनी---वे इन स्थितियों से घबरा गये । वे मिले, ऋषभकुमार के पास पहुंचे और मर्यादा के उल्लंघन से उत्पन्न स्थिति का निवेदन कियो । ऋषभ ने कहा- 'इस स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए राजा की आवश्यकता है।' 'राजा कौन होता है ?' युगलों ने पूछा। ऋषभ ने राजा का कार्य समझाया । शक्ति के केन्द्रीकरण की कल्पना उन्हें दी। युगलों ने कहा-हममें आप सर्वाधिक समर्थ हैं । आप ही हमारे राजा बनें।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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