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ब्रह्मचर्य के साधक-बाधक तत्त्व
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लिए विचलन या स्खलन होना अनिवार्य है। जब मनोबल का विकास हो जाता है तब नियम बदल जाते हैं। हम नियम और व्यवस्था को पकड़कर न बैठ जाएं। नियम जरूरी हैं पर जब व्यक्ति एक भूमिका को पार कर जाता है तब वे नियम कृतकृत्य हो जाते हैं। जब साधक सिद्ध हो जाता है, साधकत्व उपलब्ध हो जाता है तब नियम गौण बन जाते हैं। जब तक साधकत्व प्रबल नहीं है तब तक निमित्त बलवान् बना रहेगा। एक बलवान् बनता है तो दूसरा निष्क्रिय बन जाता है। जब उपादान बलवान् होता है तब निमित्त गौण हो जाता है और जब निमित्त बलवान होता है तब उपादान गौण हो जाता है। निमित्त से उपादान की ओर
ऐसी कितनी घटनाएं हैं! सुदर्शन सेठ की घटना को देखें। महारानी उसे विचलित करना चाहती है किन्तु सुदर्शन अडिग है। आचार्य भिक्षु ने इस घटना का बहुत सुन्दर चित्रण किया है। विजय सेठ और विजया सेठानी की घटना को पढ़ें। वर्तमान में देखें तो महात्मा गांधी ने ब्रह्मचर्य के संदर्भ में बड़े विचित्र प्रयोग किए। आचार्य कृपलानी ने लिखा--'गांधी ऐसे विचित्र प्रयोग कर रहे हैं। मेरा ऐसा विश्वास है कि मैं अगर गांधी को अनाचार करता हुआ देख भी लूं तो एक बार सोचूंगा--मेरी आंखें मुझे धोखा दे गई। वे ऐसा नहीं कर सकते। तेरापंथ समाज के वरिष्ठ व्यक्ति थे सुगनचंदजी
आननिया। उनका मनोबल बहुत दृढ़ था। उन्होंने भी ब्रह्मचर्य के अनेक प्रयोग किए। इनकी धृति बहुत प्रशस्य थी। जो लोग ऐसी स्थिति में चले जाते हैं, उनके लिए निमित्त अकिंचित्कर बन जाते हैं। दूसरी और निमित्तों की घटनाएं भी कम नहीं हैं। थोड़ा-साँ निमित्त मिला, व्यक्ति मोम की तरह पिघल गया। दोनों प्रकार की घटनाएं हमारे सामने हैं। प्रश्न है--हम क्या करें ? क्या ब्रह्मचर्य के जो दस स्थान बतलाए गए हैं, उनकी उपेक्षा करें ? नहीं, उनकी उपेक्षा न करें। हम अभ्यास करें निमित्तों से उपादान की
ओर जाने का। जब तक अभ्यास परिपक्व न हो तब तक निमित्तों की उपेक्षा न करें। परिपक्वता बढ़ाएं
एक घटना है। एक व्यक्ति ने पहले अपने आपको पकाया । ब्रह्मचर्य को सिद्ध किया। फिर उसका परीक्षण किया। वह पहले दिन वेश्या के पास गया। वेश्या उसके सामने बैठ गई। वह वेश्या के रंग-रूप और लावण्य को देखता रहा किन्तु उसके मनोबल में न्यूनता नहीं आई। दूसरे दिन वह वेश्या के पास बैठ गया फिर भी मन विचलित नहीं हुआ। चौथे दिन उसने वेश्या का स्पर्श किया, उसके शरीर से सटकर बैठ गया फिर भी मन विचलित नहीं हुआ। कुछ दिन ऐसा अभ्यास चला। उसके बाद
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