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चित्रशाला
विशाला
मदनालय-सी
मलयाचल सी
मोहक सी
मादक सी
अतीत स्मृति सी
प्रियंकरा कल्पना - सी मनोहरा
याद करो याद करो
पुनः सहवास करो
तिमिर का नाश करो।
यौवन है दो दिन का
सार यही जीवन का ।
बने हो क्यों योगिराज ।
उचित नहीं महाराज !
आलंबन सहित करो।
निराशा का आवरण दूर करो
याद करो याद करो
पुनः सहवास करो ।
वेश्या का यह भावपूर्ण अनुरोध भी स्थूलभद्र के संकल्प को नहीं हिला सका । जिस कोशा वेश्या के साथ स्थूलभद्र बारह वर्ष तक रहे, भोगों में डूबे रहे, वह वेश्या स्थूलभद्र के संकल्प के समक्ष पराजित हो गई। किसे बाधक तत्त्व कहा जाए और किसे साधक तत्त्व ?
चांदनी भीतर की
जरूरी हैं नियम
हम इस सचाई को समझें- जब तक मनोबल का विकास नहीं होता तब तक निमित्तों पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है। जो इन पर ध्यान नहीं देता, उसके
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