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साधुत्व की कसौटी
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का अस्तित्व ही खतरे के बिन्दु पर पहुंच जाएगा। खतरे के बिन्दु से सावधान रहना जरूरी है। यदि वहां असावधानी होगी तो विनाश अवश्यंभावी हो जाएगा। श्रावक का कर्तव्य
नदी में बाढ़ आ गई। कर्मचारियों ने अधिकारी को जानकारी दी। पानी खतरे के बिन्दु के पास आ गया है। अब क्या करें ? अधिकारी प्रमादी था। उसने कहा-चिन्ता मत करो। खतरे के बिन्दु को तीन फीट ऊंचा कर दो।
कितनी मूर्खता है ! खतरे के बिन्दु को ऊपर करने से क्या होगा ? यदि समाज प्रमादी बन जाए तो समस्या का समाधान नहीं हो सकता। आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ समाज में जागरूकता के संस्कार बीज बोए। समाज में कुछ भी अवांछित होता है, श्रावक समाज की ओर से प्रश्न प्रस्तुत हो जाते हैं। आचार्य भिक्षु ने श्रावक समाज के हाथ में एक डंडा पकड़ा दिया-किसी साधु में दोष देखो तो छिपाओ मत, तत्काल उसे जता दो, गुरु को जता दो। श्रावक समाज को एक अधिकार दे दिया। कोई . साधु-साध्वी अवांछनीय आचरण करता है तो श्रावक-समाज तत्काल जागरूक बन जाता है। वह उस बात को गुरु तक पहुंचा देता है। साधु-साध्वियां बाद में पहुंचते हैं, उनकी शिकायत पहले ही पहुंच जाती हैं। यह जागरूकता साधु-साध्वियों के स्वस्थ एवं निर्दोष आचरण का हेतु बनती है। अकेला चले
महावीर ने साधु की जो कसौटियां बतलाई, वे जागरूकता की कसौटियां हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के पंद्रहवें अध्ययन में चालीस से भी अधिक कसौटियों का उल्लेख है। उनमें कुछ आंतरिक कसौटियां है और कुछ बास्य । प्रस्तुत प्रसंग में में दो-तीन कसौटियों की चर्चा करना चाहता हूं। साधु की एक कसौटी है- अकेला होना । जो घर को छोड़कर अकेला चलना जानता है, उसका नाम है साधु । घर छोड़ने मात्र से कोई साधु नहीं बनता। जो केवल घर छोड़कर साधु बनता है और अकेला चलना नहीं जानता, उसकी साधुता में कमी आ जाएगी। बहुत बड़ी साधना है, अकेला चलना। आचार्य भिक्षु ने कहा था--'मरण धारण सुध मग लस्यो। उन्होंने संकल्प किया--में शुद्ध मार्ग पर चलूंगा, चाहे मैं अकेला रह जाऊं ।' जब तक यह एगचारिता का संकल्प दृढ़ नहीं होता, तब तक साधुता की बात पूरी आती नहीं है। साधु और शेर का टोला नहीं होता
एक राजा ने कहा--साधुओं का भी कोई टोला होता है ? शेर का कभी टोला नहीं बनता। वह अकेला चलता है। भेड़-बकरियों का टोला होता है। हाथियों का ग्रुप
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