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चांदनी भीतर की
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पीछे हजारों लोगों की भीड़ है। दे नगर को पार कर बाहर आए । चरवाहे ने कुए के पास पहुंच कर पेड़ के नीचे खड़े मुनि की ओर इशारा किया । चक्रवर्ती तेज कदमों से मुनि के समीप पहुंच गया। चक्रवर्ती ने देखा - मुनि ध्यानमुद्रा में लीन हैं। उन्हें देखते ही चक्रवर्ती के भीतर स्नेह जाग गया। उसे यह प्रतीति हो गई- यही है मेरा भाई । मैंने अपने भाई को पा लिया ।
चक्रवर्ती मुनि को संबोधित करते हुए बोला- भइया! मैं आ गया हूं। मुनिवर ने ध्यान पूरा किया। उसने भी चक्रवर्ती को पहचान लिया। बिछुड़े हुए दो भाई मिल गए। इसे दो भाइयों का मिलन कहा जाए या दो जातिस्मरणों का मिलन कहा जाए। मुनि को भी पूर्वजन्म की स्मृति और चक्रवर्ती को भी पूर्वजन्म की स्मृति । दोनों देख रहे हैं अपने अतीत के सारे चित्र को रील का ऐसा फीता खुल गया कि अनेक जन्मों के दृश्य साक्षात् होते चले गए।
अतीत की कथा
चक्रवर्ती बोला- भाई ! इससे पहले जन्म में हम सौधर्म कल्प देवलोक में पुद्मगुल्म विमान में देवता थे। उससे पहले हम मातंग थे, चाण्डाल पुत्र थे। उस समय हमारे में क्या-क्या नहीं बीता ! कैसे हमें नगर से निकाला गया ! कितने अच्छे गायक थे हम ! इतने कष्टों के बाद भी हमने साथ नहीं छोड़ा। सदा साथ बने रहे। उसी भव में हम दोनों मुनि बन गए। इसके पूर्व भव में हम गंगा नदी के तीर पर हंसयुगल हुए। उससे पहले जन्म में हम दोनों कालिंजर पर्वत पर मृग बने और शिकारी के एक ही बाण से हम दोनों की मृत्यु हो गई । उससे पूर्वजन्म में हम दास थे। आज हमारे सामने पांच भव प्रत्यक्ष हैं- दास का भव, मृग का भव, हंस का भव, मातंग पुत्र का भव और सौधर्म कल्प देवलोक का भव । इनसे पहले कोई ऐसा जन्म आ गया है, ऐसी स्थिति आ गई है, जिससे हम उससे आगे के जन्मों को नहीं जान पा रहे
हैं ।
जातिस्मरण ज्ञान संज्ञी भर्वो को जानने वाला ज्ञान है। जहां अमनस्क का जीवन बीच में आ जाता है, वहां से आगे नहीं देखा जा सकता।
क्यों बिछुड़े ?
चक्रवर्ती ने कहा- भाई ! हम पांच जन्मों को देख रहे हैं। इन जन्मों में हम सदा एक-दूसरे के साथ रहे हैं। यह छठा भव है, जिसमें हम दोनों बिछुड़ गए। भाई चित्र ! तूने स्नेह पाला नहीं और मुझसे अलग हो गया। अनेक जन्मों का यह साथ
छूट गया।
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