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दो भाइयों का मिलन
श्लोक की पूर्ति
मुनि चित्र को जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त था। श्लोक सुनते ही मुनि ने उसको पूरा करते हुए श्लोक का उत्तरार्ध सुना डाला । चरवाहे ने यह श्लोक पूर्ति सुनी। उसने सोचा- यदि यह श्लोक - पूर्ति सही होगी तो मुझे आधा राज्य मिल जाएगा। वह मुनि के पास आया। उसने मुनि को प्रणाम कर निवेदन किया- मुनिवर ! आप इस श्लोक को पुनः सुनाएं। उसने वृक्ष के एक बड़े पत्ते को उठाया और मुनिवर द्वारा बोला गया श्लोक उस पत्र पर उतार लिया। उसे लिखा ही नहीं, याद भी कर लिया। वृक्ष के पत्ते का क्या भरोसा ? कब टूट जाए ? वह चरवाहा एक हाथ में पत्ता लिये जा रहा है और उस याद किए हुए श्लोक को दोहराता जा रहा है। मन में उमंग लिए वह चक्रवर्ती की राजसभा में पहुंचा। द्वारपाल ने उसे गेट के बाहर रोक दिया। चरवाहा बोला- मुझे मत रोको, जाने दो। मैं श्लोक की पूर्ति करने के लिए आया हूं। द्वारपाल से अनुज्ञा लेकर वह भीतर पहुंचा। चक्रवर्ती को नमस्कार कर निवेदन किया--महाराज! मैंने श्लोक पूरा कर दिया है।
चक्रवर्ती ने कहा-- सुनाओ अपना श्लोक |
चरवाहे ने मुनि के द्वारा रचा गया पद्य बोल दिया-
आस्व दासौ मृगौ हंसी, मातंगावमरौ तथा ।
एषा नव षष्ठिका जातिः, अन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः ॥
श्लोक किसने बनाया ?
जैसे ही इस श्लोक को सुना, चक्रवर्ती मूर्च्छित हो गया। वह सिहांसन से नीचे गिर पड़ा। यह देख राज्य कर्मचारी उस चरवाहे को डांटने लगे- बेवकूफ हो तुम । कहीं ऐसा श्लोक बनाकर लाया जाता है। तुमने राजा को मूर्च्छित कर दिया । यह कहते हुए राज्य कर्मचारियों ने चरवाहे की पिटाई शुरू कर दी । आधा राज्य मिलना तो कहीं रहा, मार और पड़ने लगी। उसने सिसकते हुए कहा- मुझे मत मारो ! यह श्लोक मैने नहीं बनाया है।
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यह सुनते ही चक्रवर्ती सावधान हो गया। उसने सोचा क्या बात है ? यह श्लोक इसने नहीं बनाया है ? चक्रवर्ती ने पूछा- किसने बनाया है यह श्लोक ?
चरवाहे ने कहा--राजन् ! कुए के पास एक मुनि खड़े हैं। उन्होंने यह श्लोक बनाया था और उसको ही मैंने यहां सुनाया है ?
चक्रवर्ती तत्काल खड़ा हो गया। उससे रहा नहीं गया। वह चरवाहे को साथ ले चल पड़ा। आगे चरवाहा चल रहा है, उसके पीछे चक्रवर्ती चल रहा है और उसके
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