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दो भाइयों का मिलन
हैं, ध्यान की मुद्रा बन जाती है। निमेष, अनिमेष-ये शब्द मिलन तथा उससे जुड़ी विभिन्न मुद्राओं की सूचना देते हैं। मिलन बहुत काम का होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में दो भाइयों के मिलन का जो प्रसग है, वह बहुत ही रोमाचंक है। दो भाई मिले हैं
और बहुत ही विचित्र ढंग से मिले हैं। नट प्रमुख की प्रार्थना
चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त अपनी राजसभा में बैठा था। एक नटमण्डली आई। वह नटविद्या में बहुत दक्ष थी। प्राचीन युग में बहुत नाटक खेले जाते थे। नाटककारों का अभिनय कौशल जनता को बांधे रखता था। आज भी नाटक की परम्परा चल रही है। यह सिनेमा का युग है फिर भी नाटक का मूल्य बना हुआ है। आज नाटक का पुनर्जन्म हो रहा है, उसका मूल्य बढ़ रहा है। नाटक में जो सजीवता आती है, वह कभी कभी व्यक्ति के चेतन मन को अतिक्रांत कर अवचेतन मन को छू लेती है।
नटप्रमुख ने प्रार्थना की-राजन् ! हम आपको एवं आपकी प्रजा को प्रमुदित करने वाले नाटकों का प्रदर्शन करना चाहते हैं। राजा ने नट प्रमुख के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। यह घोषणा हो गई-नाटक दिखाया जाएगा और चक्रवर्ती के सामने दिखाया जाएगा। विशाल मैदान में व्यवस्था की गई। रंगमंच तैयार हो गया। निश्चित समय पर नट मंडली प्रस्तुत हो गई। चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त भी नाटक देखने के लिए पधारे। हजारों-हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। विशाल मैदान छोटा लगने लगा। मधुकरी गीत
प्रदर्शन था मधुकरी गीत नामक नाट्य-विधि का। बहुत विचित्र होता है यह नाटक । रायपसेणीय सूत्र में नाटक की अनेक विधियों का वर्णन है, नाटक के अनेक प्रकारों का विवेचन है। उनमें प्रमुख नाट्य विधि है मधुकरी गीत। जैसे फूलों पर भंवरा आता है, गुंजारव करता है। कभी किसी फूल पर बैठता है और कभी किसी फूल पर बैठता है। कभी किसी का रस लेता है और कभी किसी का रस लेता है। एक फूल का रस लिया, आकाश में उड़ गया। दूसरे फूल का रस लिया, आकाश में उड़ गया। वैसे ही मधुकरी गीत नाट्य में फूलमालाएं बिछा दी जाती हैं। नट कभी किसी फूलमाला का स्पर्श करता है और कभी किसी अन्य फूलमाला का। एक फूल का स्पर्श करता है और भंवरे की तरह उड़ जाता है। पुनः आता है, दूसरे फूल का स्पर्श करता है और फिर उड़ जाता है। एक ओर गायन चलता है, वाद्ययंत्रों से विभिन्न प्रकार की नाट्य ध्वनियां निकलती हैं, दूसरी ओर व्यक्ति फूलों के स्पर्श का करतब दिखाता चला जाता है।
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