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________________ चांदनी भीतर की ग्वाले का गायों पर अधिकार नहीं है और खजांची का खजाने पर अधिकार नहीं है। मुनिवर ! क्या आपका श्रामण्य पर अधिकार है ? आपने उस पर अपना अधिकार खो दिया है। अब आप ईश्वर नहीं रहे, केवल चौकीदार बन गए हैं। __ मुनि रथनेमि के मानस पर चोट लगी। उन्होंने सोचा--कितनी सही बात कही जा रही है-मैं अपना ईश्वर नहीं रहा। ईश्वर कौन है ? जो व्यक्ति ईश्वर नहीं होता, वह कहीं का नहीं होता, केवल बिचौला होता है। न इधर का रहता है और न उधर का रहता है। हम ग्वाले को देखें। वह सारे दिन जंगल में भटकता है, सर्दी गर्मी को सहता है, भूख-प्यास को सहता है। उसे मिलता क्या है ? गायों के दूध पर भी उसका अधिकार नहीं है। दूध पर अधिकार है गायों के अधिपति का। यही स्थिति तब बनती है, जब व्यक्ति का अपने श्रामण्य पर अधिकार नहीं होता, वह अपने श्रामण्य का ईश्वर नहीं होता। बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है--ईश्वर कौन हो सकता है ? श्रामण्य का ईश्वर वही हो सकता है, जिसने अपनी स्वतंत्र चेतना से श्रामण्य का स्पर्श किया है। जो दूसरों के द्वारा संचालित बना, उसका ईश्वरत्व समाप्त हो गया। बहुत सारे काम ऐसे होते हैं, जो दूसरों के द्वारा संचालित होते हैं पर अपने द्वारा संचालित हुए बिना उसमें जो ईश्वरत्व प्रकट होना चाहिए, वह नहीं हो पाता। किसके कहने पर आगम साहित्य के व्याख्या ग्रंथों का एक कथा प्रसंग है। एक राजा ने कोई निर्णय लिया। वह निर्णय प्रजा के अनुकूल नहीं था। राजा ने अपना निर्णय मंत्री को बताया। वह केवल मंत्री ही नहीं था, राजा का मित्र भी था। यदि केवल मंत्री होता तो राजा के निर्णय को स्वीकार कर लेता लेकिन उसकी स्थिति मंत्री से भी महत्वपूर्ण थी। मंत्री ने कहा--राजन् ! आपने जो निर्णय लिया है, वह प्रजा के हित में नहीं है। आप क्षमा करें--ऐसा लगता है, आपने यह निर्णय महारानी के कहने से लिया है। राजा को यह बात कैसे मान्य हो सकती थी। राजा बोला--तुम गलत कहते हो। मैं ऐसा नहीं हूं, जो पत्नी के कहने से निर्णय 'आप क्या, सारी दुनिया ही स्त्रियों के कहने पर चलती है।' 'दुनिया क्या करती है, मुझे नहीं पता। पर मैं अपने स्वतंत्र दिमाग से निर्णय लेता हूं। मुझे जो उचित लगता है, वही काम करता हूं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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