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________________ १६६ चांदनी भीतर की चोर का निमित्त मिला, समुद्रपाल प्रतिबुद्ध हो गया। प्रश्न हो सकता है--पुलिस प्रतिदिन न जाने कितने चोरों को पकड़ती है। उसमें क्या वैराग्य जागता है ? वह चोरों को देखती ही नहीं है, मारती-पीटती भी है। न जाने उनके साथ कैसा कैसा व्यवहार करती है फिर भी उसमें कभी वैराग्य नहीं आता। न्यायाधीश के सामने चोरों को कितनी बार पेश किया जाता है। एक ही चोर बहुत बार न्यायाधीश के सामने चला जाता है पर न्यायाधीश को वैराग्य नहीं आता। उपादान से जुड़ा है निमित्त न्यायाधीश ने चोर से कहा-मैंने तुम्हें कितनी बार फटकारा है। तुम मेरे सामने क्यों आते हो ? चोर ने जवाब दिया-महाशय ! मैं क्या करूं ? मैंने पुलिस वालों से कहा-आप मुझे वहां मत ले जाइए, न्यायाधीश महोदय ने मनाही की है। फिर भी वे मुझे यहां ले आते हैं। न्यायाधीश चोर को दण्ड देता है, फांसी की सजा सुना देता है। क्या कभी कोई न्यायाधीश वैरागी बना ? चोर को देखकर समुद्रपाल वैरागी क्यों बना ? हम इस बिन्दु पर चिन्तन करें, यथार्थ का पता चलेगा। निमित्त का अपना स्थान होता है। वह तब कारण बनता है, जब उपादान जाग जाता है। यदि उपादान न जागे, तो निमित्त निमित्त बनता ही नहीं है। एक ही घटना, एक ही तथ्य और सत्य किसी के लिए अच्छाई का निमित्त बन जाता है किसी के लिए बुराई का । निमित्त उपादान सापेक्ष है। जिसका जैसा उपादान, उसके लिए वैसा ही निमित्त बन जाता है। बदलता है परिणाम एक व्यक्ति ने कहा--अमुक व्यक्ति की कुण्डली में ये नक्षत्र हैं और उसका यह परिणाम है, किन्तु यदि वह चाहे, अपने आपको बहुत शक्तिशाली बना ले तो यह परिणाम नहीं होगा। परिणाम को बदला जा सकता है। वह नियति नहीं है, परिवर्तनीय है। वह संभव है उपादान के द्वारा। साधना की सारी पद्धति उपादान को बलवान बनाने की पद्धति है। शब्द, गंध, रस और स्पर्श--ये सर्वत्र हैं। ये वीतराग को कभी प्रभावित नहीं करते। वे क्यों नहीं प्रभावित कर पाते? यदि वे निमित्त हैं तो सबके लिए समान होने चाहिए। एक वीतराग भी उनसे प्रभावित होना चाहिए पर वह नहीं होता। उसका उपादान इतना शक्तिशाली बन गया कि उसके लिए वह निमित्त बनता ही नहीं है। वीतराग को कोई गाली दे। क्या वीतराग को क्रोध आएगा ? उसको कभी क्रोध नहीं आएगा। उसके लिए वह गाली निमित्त बनती ही नहीं है। एक साधारण आदमी को गाली दें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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