________________
१६४
काली भैंस का ।
भैंस तो मेरे पास नहीं है ।
कोई बात नहीं । तुम तिल का दान कर लो।
वह भी नहीं है।
एक काली कंबल दान में दे दो।
कंबल भी मैं नहीं दे सकता।
तो तुम एक बोरी कोयले का दान कर दो।
मेरा उतना सामर्थ्य भी नहीं है।
ज्योतिषी ने झिड़कते हुए कहा- चले जाओ यहां से । शनि तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा। जो तुम्हारे पीछे निरन्तर लगा हुआ है, वह क्या बिगाड़ेगा ?
निमित्त मूल नहीं है
हम ध्यान दें उपादान पर । उपादान कैसा है ? निमित्त लंगड़ाता-सा है, वह बहुत थोड़ा काम करता है। हम निमित्त पर न अटकें । उपादान को शक्तिशाली बनाएं। एक प्रश्न है - साधना का प्रयोजन क्या है ? साधना क्यों की जाती है ? साधना है उपादान को शक्तिशाली बनाने के लिए। हमारा मन, हमारी चेतना और आत्मा शक्तिशाली बने, जिससे निमित्त को ग्रहण ही कम करे। यदि उपादान को शक्तिशाली नहीं बनाया, निमित्त पर ही अटके रहें तो अनंत काल तक भी समस्याओं के चक्र से छुटकारा नहीं मिलेगा । हम निमित्त की उपेक्षा न करें और न उन्हें सर्वशक्तिमान् मानें। वे सब कुछ नहीं हैं। हमें द्रव्य और क्षेत्र प्रभावित करते हैं, काल और भाव प्रभावित करते हैं। ये सब हमें प्रभावित करते हैं किन्तु सिद्ध आत्मा को ये प्रभावित नहीं करते । जहां मुक्त आत्मा है, वहां क्या हवा नहीं है ? पृथ्वी और पानी के जीव नहीं हैं ? पुद्गल नहीं हैं ? वहां भी ये सब हो सकते हैं। पूरा आकाश-प्रदेश पुद्गलों से भरा पड़ा है। एक भी आकाश-प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां पुद्गल न हों। पर मुक्त आत्मा इन सबसे प्रभावित नहीं होती। इसका कारण यही है- उपादान निरपेक्ष बन गया, इसलिए वहां निमित्त अकिंचित् कर बन जाते हैं, निमित्त की शक्ति क्षीण हो जाती है । वस्तुतः निमित्त कोई बनता ही नहीं है । द्रव्य द्रव्य है, क्षेत्र क्षेत्र है, काल काल है और भाव भाव है। जिसमें उपादान की क्षमता जाग गई, उसके लिए ये निमित्त बनते ही नहीं हैं। जहां उपादान प्रबल नहीं होता, वहां निमित्त प्रभावी बन जाते हैं। मूल निमित्त नहीं है, मूल है उपादान ।
Jain Education International
चांदनी भीतर की
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org