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चांदनी भीतर की
है। यह वैचारिक दृष्टि से बहुत फैला । कुछ इस भाषा में सोचते हैं--केवल विचार से क्या होगा? वे लोग इस सचाई को नहीं जानते-स्थूल कार्य में जो शक्ति नहीं होती, वह शक्ति विचार में होती है। ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने जो विचार दिए, उस समय शायद उनकी उपयोगिता और मूल्य नहीं समझा गया पर वे आज अनायास साकार हो रहे हैं। हम निःशस्त्रीकरण का विचार लें। यह निशस्त्रीकरण शब्द किसके द्वारा प्रयुक्त है ? महावीर ने सबसे पहले प्रयोग किया शस्त्र परिज्ञा का। मैंने आज से चालीस वर्ष पहले 'विजय यात्रा' लिखी, उसमें शस्त्र परिज्ञा का अनुवाद किया-निशस्त्रीकरण । समन्वय के विकास का विचार हो या एक मंच पर दो विरोधी राष्ट्रों का या दो विरोधी समाजों के मिलन का विचार, ये सारे विचार महावीर ने दिए पर उस समय इनका मूल्य नहीं आंका गया। यह सचाई है-कोई भी अच्छा विचार कभी निष्फल नहीं होता। हर विचार फलवान बनता है, पुत्रवान बनता है। उसकी संतति चलती है। चालीस वर्ष पूर्व अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात हुआ। एक संशय के वातावरण में प्रारंभ यह आंदोलन आज वैचारिक दृष्टि से अत्यन्त शक्तिशाली बन गया है इसलिए वह दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम है। जब तक विचार शक्तिशाली नहीं बनता, पकता नहीं है, अपना कवच नहीं बना लेता है तब तक वह प्रभावित नहीं कर पाता। हमें यह मानना चाहिए- अहिंसा का जो विचार चला है, चल रहा है, उसने अज्ञात रूप से दुनिया की महान् शक्तियों को प्रभावित किया है। धर्म का मंगल स्वरूप
धर्म एक शक्तिशाली चिन्तन है। दुनिया में जितने चिन्तन हुए हैं, उनमें सबसे शक्तिशाली जो चिन्तन है, वह धर्म का चिन्तन है। धर्म के क्षेत्र में सबसे बड़ा अवदान है अहिंसा का, करुणा, मैत्री और संवेदनशीलता का। हम प्रतिदिन यह मंगल भावना करें-शिव संकल्पमस्तु मे मनः । यह चिन्तन जीवन निर्माण के लिए सबसे शक्तिशाली चिन्तन है। जिस व्यक्ति के मन में यह चिन्तन प्रबल बन जाता है-- 'मेत्ति मे सव्व भूएसु-सब प्राणियों के प्रति मेरी मैत्री है, इससे बड़ा कोई मंगल कार्य हो नहीं सकता। अहिंसा शक्तिशाली बने, धर्म मंगल व कल्याणकारी बने, वह अफीम या नशा न बने। इसके लिए आध्यात्मिकता का विकास जरूरी है। हम अपने जीवन को आध्यात्मिक बनाएं, संस्थागत धर्म को हिंसा से मुक्त रखें तो धर्म कल्याणकारी बन जाएगा। वह कभी अफीम या नशा नहीं होगा। यह दुर्भाग्य की बात है--धर्म के साथ भी हिंसा जुड़ गई । इसमें धर्म का कोई दोष नहीं है, धर्म के प्रवर्तकों का कोई दोष नहीं है। हम महावीर, बुद्ध, ईसा, मुहम्मद, जरथुस्त्र आदि धर्म प्रवर्तकों के जीवन को
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