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चांदनी भीतर की
हम अध्यात्म के रहस्य को समझें तो एक प्रांति का निरसन हो सकता है। जो हमारा स्व नहीं है, वहां हम अपना स्वामित्व बनाए बैठे हैं और इसीलिए छोटे से भूमि के टुकड़े के लिए बड़े-बड़े संघर्ष और युद्ध हो जाते हैं। भूमि के लिए कहा गया-यह ऐसी कुंवारी कन्या है, जिसकी आज तक शादी हुई ही नहीं, जिसे कोई ब्याह ही नहीं सका और इसके लिए भी लड़ाई होती है। धन किसी का स्व नहीं पर इसे स्व मान लिया गया। जो स्व नहीं है, उस पर हमने अपने स्वामित्व का आरोपण कर लिया। ज्ञान, दर्शन और चारित्र जो हमारे स्व हैं, उनको हमने जाना नहीं। यह स्व और स्वामित्व का जो अन्तराल है, वह सारे संघर्षों का हेतु बन रहा है। जब तक व्यक्ति स्व और स्वामित्व, नाथ और अनाथ के इस रहस्य को विमर्श पूर्वक स्वीकार नहीं करता, तब तक वह अध्यात्म के क्षेत्र में अपना उन्नयन नहीं कर सकता।
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