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________________ १३४ चांदनी भीतर की चिकित्सा की पद्धति प्रश्न है-कोई मुनि बीमार हो जाए तो क्या करें ? इसकी दो पद्धतियां रही हैं। एक यह पद्धति रही--विकित्सा न करे। दूसरी यह पद्धति रही-चिकित्सा करे । एक मुनि बीमारी को सहन कर लेता है और एक मुनि बीमारी को सहन नहीं कर पाता। जो सहन करता है, वह भी चिकित्सा करे और जो सहन न करे, वह भी चिकित्सा करे। चिकित्सा सबके लिए मान्य है। वह चिकित्सा है उपवास की। हजारों वर्ष पुराना विधान रहा--शरीर का शोषण करो, शरीर को सुखाओ। कहा गया-- शुष्यतः त्रीणि शुष्यन्ति, चक्षुरोगो ज्वरो व्रणः। शरीर का शोषण और विशोषण होता है तो तीन रोग सूख जाते हैं-चक्षु रोग, ज्वर और व्रण। संदर्भ ज्वर का __जब ज्वर आ जाए तो क्या करना चाहिए ? इस संदर्भ में यह भी कहा गया-- ज्वर आने पर कम से कम अट्ठम तप (तीन दिन का उपवास) करना चाहिए। हो सके तो ज्यादा करे पर कम से कम इतना तो करना ही चाहिए। प्रश्न हुआ-यदि व्यक्ति तेला करने में असमर्थ है तो क्या किया जाए ? तेला पूरा न कर पाए, एक दिन उपवास करते ही पारणा कर ले तो क्या करें ? उसके लिए विधान किया गया--एक सप्ताह तक थोड़ा गरम पानी और उसमें अन्न मिलाकर पिला दिया जाए। दूसरे सप्ताह तक उस मात्रा को कुछ बढ़ाया जाए। इस प्रकार तीन-चार या पांच सप्ताह तक उसे लंघन कराया जाए। केवल गरम पानी और थोड़ा-सा अनाज। धीरे-धीरे अनाज का हिस्सा बढ़ाया जाए। चार-पांच सप्ताह बाद पर्याप्त भोजन दिया जाए। यह उपवास चिकित्सा की पद्धति, जो प्राचीन काल से चल रही है, बहुत महत्वपूर्ण है। आज भी इसका बहुत प्रयोग किया जा रहा है। हैदराबाद, बैंगलोर, गोरखपुर आदि नगरों में प्राकृतिक चिकित्सालय चल रहे हैं। विदेशों में भी ऐसे अनेक केंद्र हैं, जहां प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा उपचार किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का एक रूप है--उपवास। मृगापुत्र के उत्तर में इसका बीज उपलब्ध होता है। बीमारी का कारण मृगापुत्र ने कहा--हरिण आदि पशुओं को रोग आता है। जब तक ठीक नहीं हो जाते, तब तक एक स्थान पर बैठे रहते हैं। मैं रोग आने पर वैसा ही करूंगा। बीमारी अपने आप मिट जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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