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________________ मोम के दांत और लोहे के चने १२५ एक प्रार्थना करूं, आप बुरा न मानें। बड़ों का काम छोटों की दुर्बलता को उकसाना, उन्हें दुर्बलता में ले जाना, उनमें हीन भावना पैदा करना है या उनमें उदात्त भावना पैदा करना है ? बड़ों का काम क्या है ? हीन भावना पैदा करनी चाहिए या उदात्त भावना ? आपका काम यह है कि आप मुझे सहारा दें, प्रोत्साहन दें। आप यह प्रेरणा दें-बेटा ! तुमने बड़ा लक्ष्य चुना है। बड़ा अच्छा मार्ग चुना है। हम तुम्हारा सहयोग करेंगे, पर आपने ऐसा नहीं किया। आपने मल्ल का काम किया, गुरु का काम नहीं किया। मल्ल का काम होता है पछाड़ना और गुरु का काम होता है उठाना। आपने वही काम किया है पर मैं पूरे आत्म-विश्वास के साथ कहता हूं-मैं अपने लक्ष्य में सफल बनूंगा और अपनी दुर्बलता को छोडूंगा। दुर्बलताओं को भी मैंने साक्षात् देख लिया है। मैं इसीलिए साधु बन रहा हूं कि उन वृत्तियों को जीतकर दुर्बलताओं को मिटा सकू। जिस व्यक्ति में यह आत्म-विश्वास जाग जाता है, वह सफल बन जाता है। मृगापुत्र का आत्म-विश्वास जाग गया। यह केवल मृगापुत्र की बात नहीं है, दुनिया में सैकड़ों ऐसी घटनाएं हुई हैं। जहां जहां आत्म विश्वास जगा है, आदमी सफल बना आत्म-विश्वास की निष्पत्ति __ बेंजामिन फ्रेंकलिन १७ वर्ष की आयु में घर से निकल गया। कारण बना बड़े भाई का व्यवहार । वह घर से बेघर हो गया। एक भाषा में वह अनगार हो गया। न्यूयार्क गया और वहां दूसरा काम किया। उसे प्रेस में नौकरी मिली और वहां काम शुरू किया। माता-पिता को बड़ी चिन्ता हुई, खोज शुरू की और पता मिलते ही पत्र लिखा। पत्र के उत्तर में बेंजामिन ने जो पत्र लिखा, वह बहुत ही मार्मिक पत्र था। उसने लिखा--माता-पिता ! आप मेरी चिन्ता न करें, मैं प्रसन्न हूं। मुझे नौकरी मिल गई है, काम कर रहा हूं। आपको यह संदेह नहीं होना चाहिए कि मैं सफल होऊंगा या नहीं ? उन्होंने लिखा-यदि इस दुनिया में ईमानदारी, अध्यवसाय, मितव्ययता, परिश्रम और मादक द्रव्यों से परहेज करना-ये सफल होंगे, तो निश्चित ही मैं अपने जीवन में सफल बनूंगा और ये सफल नहीं होते हैं तो फिर कोई बात नहीं है। सचमुच ऐसा ही हुआ। उसने ईमानदारी और दृढ़ अध्यवसाय से काम किया, बुराइयों से बचा रहा, इसका परिणाम यह आया-वह सफल हो गया, दुनिया का एक बड़ा आदमी बन गया। जिस व्यक्ति में यह आत्म-विश्वास जाग जाता है कि मैं अपने गुणों के कारण अपने जीवन में महान बन सकता हूं और बड़ा काम कर सकता हूं, सफल हो सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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