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राजर्षियों की परंपरा
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असमाधि का निमित्त दूसरा बन सकता है पर उपादान व्यक्ति स्वयं है। हम इस सूत्र को हृदयंगम करें-जिस मूर्छा के वातावरण में पले-बढ़ें, उसी वातावरण में मरना मूर्खता है। यह बात समझ में आए तो जीवन और मृत्यु का रहस्य पकड़ में आ जाए। जो इनके रहस्य को जान लेगा, वह सारी कलाओं का पारगामी बन जाएगा। प्राचीन राजर्षियों की जीवन चर्या के विश्लेषण से इसी सचाई का अनावरण होता है।
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