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________________ चांदनी भीतर की साधुता की शोभा विनम्रता साधुता की शोभा है। प्राचीन साधुओं की जीवनियां पढ़ें। जितने भी अच्छे साधु हुए हैं, वे अत्यन्त विनम्र थे। जैन परम्परा में और अन्य पराम्पराओं में भी ऐसे साधुओं का प्रचुर उल्लेख मिलता है। साधु कहीं भी मिल सकता है, सज्जनता कहीं भी मिल सकती है। भद्रता, उच्चता और विशालता-ये किसी देशकाल से बंधे हुए नहीं है। ऐसे ऐसे विलक्षण सन्त हुए हैं, जिन्होंने हर बात को सहा है। आचार्य भिक्षु की जीवनी को पढ़ें, उन्होंने बहुत कुछ सहा है। प्रत्येक बात को सम्यक् ग्रहण करना उनके जीवन की विशेषता थी। जो आदमी हर बात को सम्यक् ले लेता है, उसका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। महान् बनने का बिन्दु खोजें बुद्धिमान आदमी वही होता है, जो बुराई में से अच्छे प्रसंग निकाल लेता है। जिस आदमी में विशालता होती है, उसमें महानता जागती है। गुरुता और बड़प्पन के लिए इन छोटी-छोटी बातों से बचना बहुत आवश्यक है। आदमी को अनेक बार सहना पड़ता है। यह सहना उसमें बड़प्पन लाता है और न सहना छुटपन लाता है। अगर छोटे व्यक्तियों से निम्नता का व्यवहार करोगे तो जीवन भर वे तुम्हारे सामने बोलते ही रहेंगे। खुद में महानता नहीं होती है, छिछलापन होता है तो व्यक्ति जीवन भर छोटा ही बना रहता है। जब एक मुनि की महानता और विशालता कम होती है, उसमें शुद्धता की वृत्ति जन्म नहीं लेती है तब साधुता सिसक उठती है। साधुता के सिसकते रूप को बदलने के लिए बुद्धिमानी और शालीनता की जरूरत है, विशालता और महानता की जरूरत है। यदि व्यक्ति बुद्धिमान होता है, उदात्त और महत्तम प्रकृति का होता है तो प्रत्येक घटना में से महान् बनने का बिन्दु खोज लेता है। जो व्यक्ति सम्यग् आचरण और व्यवहार करना जानता है, वह सारे विवादों को शान्त कर देता है, समाधि का जीवन जीता है और पुण्य श्रमण बन जाता है। इस सूत्र पर निरन्तर मनन किया जाये तो साधुता समर्थ और शक्तिशाली बनती चली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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