SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शास्त्रों के व्यापक अर्थ की खोज का दृष्टिकोण I आचार्य विनोबा भावे ने शब्द के अर्थ परिवर्तन की जो दृष्टि प्रस्तुत की है वह मेरी दृष्टि मे बहुत महत्तवपूर्ण है । उन्होने 'गीता प्रवचन' (पृष्ट १७) में लिखा है -- “ गीता पुराने शास्त्रीय शब्दों को नये अर्थों में प्रयुक्त करने की आदी है पुराने शब्दो पर नये अर्थ की कलम लगाना विचारक्रान्ति की अहिंसक प्रक्रिया है । व्यासदेव इस प्रक्रिया में सिद्धहस्त थे । उससे गीता के शब्दो को व्यापक अर्थ प्राप्त हुआ और अनुभव के अनुसार अनेक अर्थ ले सके। अपनी-अपनी भूमिका पर ये सब अर्थ सही हो सकते हैं और उनके विरोध की आवश्यकता न पड़ने देकर हम स्वतन्त्र अर्थ भी कर सकते हैं, ऐसी मेरी दृष्टि है । " आचार्य विनोबा भावे सत्यग्राही व्यक्ति है, इसलिए उनमें शब्दो की पकड़ नहीं है, सत्य की पकड़ है। उन्होने 'समण सुत्त' के समाधान मे लिखा है — “मै कबूल करता हूं कि मुझ पर गीता का गहरा असर है। उस गीता को छोड़कर महावीर से बढ़कर किसी का असर मेरे चित्त पर नहीं है । उसका कारण यह है कि महावीर ने जो आज्ञा दी है वह बाबा को पूर्ण मान्य है । आज्ञा यह है कि सत्यग्रही बनो । आज जहां-जहां जो उठा सो सत्याग्रही होता है । बाबा को भी व्यक्तिगत सत्याग्रही के नाते गांधीजी ने पेश किया था, लेकिन बाबा जानता था वह कौन है ? वह सत्याग्रही नही, सत्यग्राही है । हर मानव के पास सत्य का अंश होता है, इसलिए मानव-जन्म सार्थक होता है। तो सब धर्मों में, सब पन्थों मे, सब मानवो में सत्य का जो अंश है उसको ग्रहण करना चाहिए। हमको सत्याग्रही बनना चाहिए, यह जो शिक्षा है महावीर की, बाबा पर गीता के बाद उसी का असर है। गीता के बाद कहा, किन्तु जब देखता हूं तो मुझे दोनो में फर्क ही नही दीखता है । " मेरी दृष्टि मे अनेकान्त सत्य की खोज का सबसे शक्तिशाली माध्यम है । उसके आधार पर ही शब्द को व्यापक अर्थ दिया जा सकता है । सत्य अनंत है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy