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मंगल पाठ तो अपनी अंगुलियों पर भरोसा कैसे होगा? आज यह भरोसा नहीं रहा । हर आदमी को नौकर चाहिए और नौकर महंगे व दुर्लभ होते जा रहे हैं।
सम्पदा के साथ जुड़ा हुआ है-दूसरों का दुःख । पदार्थ के साथ-साथ होने वाले सुख, समृद्धि और आनन्द की गाथा यही रही है कि दूसरे उससे छोटे एवं दुःखी उसके साथ जुड़े हुए होने चाहिए। आदमी दूसरों पर बहुत भरोसा करता है, क्योंकि दृष्टिकोण ऐसा बन जाता है कि वह दूसरों से ही काम लेना चाहता है। और तो क्या धर्म के मामले में भी यही चाहता है कि दूसरों से करवा लूं। एक घटित घटना है-साध्वी ने एक बहन से कहा-कल या तो तुम उपवास रखना, या किसी से करवा लेना । बहन ने स्वीकृति दे दी। तीसरे दिन बहन आयी । साध्वी ने पूछा-उपवास किया या करवा दिया? बहन बोली-मैं तो नहीं कर सकी, करवा दिया। साध्वी ने पूछा- किससे? बहन बोली-अपनी भैंस से चौविहार उपवास करवा दिया।
ऐसा क्यों होता है ? ऐसा इसलिए होता है कि हमारा भरोसा दूसरों से काम करवाने में ज्यादा है । शायद खाने का प्रसंग होता तो भैंस से कभी नहीं करवाता । ऐसा ही कुछ हमारा विश्वास बन गया। बड़ा अजीब विश्वास हो गया । वास्तव में यह आनन्द, यह सुख मंगल नहीं हो सकता। मंगल वह आनन्द होता है. जहां समृद्धि के लिए दूसरों को गरीब न बनाना पड़े, अपने ऐश्वर्य और प्रभुत्व के लिए दूसरों को नीचा न दिखाना पड़े।
.. आचार्य भिक्षु जंगल में बैठे थे पेड़ के नीचे । एक भाई उधर से गुजरा। देखा, कोई साधु पेड़ के नीचे बैठा है। प्रणाम किया और पूछा- “महाराज ! आपका क्या नाम है ?"
"मेरा नाम भीखण है।"
"भीखण जी आप ही हैं? वही तेरापंथी भीखण? मेरे मन में तो एक दूसरी ही तस्वीर थी आपकी । मैंने तो आपकी बड़ी महिमा, यश और कीर्ति सुनी थी। सोचता था-कितने हाथी, घोड़े, रथ तथा सेवक आदि साथ में रहते होंगे आपके । पर आप तो इस निर्जन एकान्त में अकेले ही दिखाई दे रहे हैं। सारी तस्वीर खण्डित हो गई।"
आचार्य भिक्षु ने कितनी मार्मिक बात कही। उन्होंने कहा-मैं अकेला हूं, तभी यह प्रशंसा है। मेरे पास कोई आडम्बर नहीं है, इसीलिए इतना नाम है।
यह आनन्द होता है मंगल, जिसमें दूसरों को नीचा नहीं बनाया जाता, नौकर
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