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________________ उस संघ को प्रणाम तेरांपथ का अर्थ तेरांपथ का अर्थ है-आत्मोत्सर्ग । जो व्यक्ति आत्मोत्सर्ग करना नहीं जानता, वह तेरापंथ को नहीं जान सकता। जिस व्यक्ति में आत्मोत्सर्ग की क्षमता होती है, व्यक्तिगत अहं और व्यक्तिगत स्वार्थ के विसर्जन की क्षमता होती है, वही व्यक्ति वास्तव में तेरापंथ का अर्थ समझ सकता है। एक विदेशी लेखक ने लिखा है-हिन्दुस्तान की एक सबसे बड़ी समस्या है—व्यक्तिगत स्वार्थवादी मनोवृत्ति । इस समस्या ने सारे राष्ट्र में भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। ___ आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ का दर्शन दिया। उसमें सबसे पहली बात आत्मोत्सर्ग की कही । समर्पण और आत्मोत्सर्ग का विकास निरन्तर हुआ है, इसमें कोई सन्देह नहीं। आज तक की हमारी परम्परा में बहुत पहले से आत्मोत्सर्ग और समर्पण की बात रही है, विनम्रता और अनुशासन की बात रही है। जिस संघ में गुरु के प्रति सर्वात्मना समर्पण होता है, उस संघ का नाम है-तेरापंथ । साधु बनना, पांच महाव्रतों का पालन करना, पांच समितियों और तीन गुप्तियों का पालन करना अनिवार्य बात है। किन्तु उसमें भी अनिवार्य बात है। समर्पण और अनुशासन की। आचार्य भिक्षु ने सोचा यदि संघ में संगठन और अनुशासन नहीं होगा तो महाव्रतों, समितियों और गुप्तियों का पालन भी नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने आचार के साथ-साथ अनुशासन को भी बड़ा महत्व दिया। तेरापंथ आचार-प्रधान संघ है तो साथ-साथ अनुशासन-प्रधान संघ भी है। जितना मूल्य इसमें आचार का है, उतना ही अनुशासन का भी है । आज तक की हमारी परम्परा ने इस बात को प्रमाणित किया है कि जिस व्यक्ति ने अनुशासन को भंग किया, वह आचार में भी स्थिर नहीं रह सका। ऐसा सम्भव ही नहीं लगता । आचार और अनुशासन दो आंखों की तरह हैं। एक आँख फूट जाती है तो आदमी काना बन जाता है। आचार और अनुशासन हमारे दो हाथ और दो पैरों की तरह हैं। एक हाथ या एक पैर के ट जाने पर आदमी टोंटा या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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