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________________ १५६ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि जोड़ देते हैं । जानने की पवित्र धारा के साथ-साथ कषायों का गंदला पानी भी उसमें भर लिया है। प्रेक्षा ध्यान चित्त को कषायों से मुक्त कर उसे विशुद्ध बनाने की प्रक्रिया है, जीवन की शैली को बदलने की प्रक्रिया है । I जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन करे, वही वास्तविक धर्म है । आदमी दुःखी बनता है, बुराई या अप्रामाणिकता में जाता है अज्ञानवश । उसमें कोई भावना पैदा होती है और वह ज्ञान की विपरीत दिशा में चला जाता है 1 उद्दीपनों पर हम कंट्रोल कर सकें, यह केवल कल्पना से नहीं होगा। इसका संकल्पपूर्वक नियमित अभ्यास करना होगा। कौन-सी प्रवृत्ति कहां से उभरती है और उसका नियमन कहां से होता है, यह जानना बहुत आवश्यक है । हमारे भीतर प्रकाश भी है और अन्धकार भी । अन्धकार को कहां से और कैसे मिटाएं, इसे अच्छी तरह से समझना है । एक व्यक्ति की मोटर खराब हो गई। तमाम कोशिशों के बाद भी इंजन स्टार्ट नहीं हुआ । मेकेनिक को बुलाया । वह आया, देखा और बोला – सौ रुपये लूंगा। मजबूरीवश स्वीकार करना पड़ा। मेकेनिक ने इंजन के किसी पार्ट पर हथौड़े से चोट की और इंजन स्टार्ट हो गया । मोटर का मालिक बोला- भाई, यह तो मैं भी कर सकता था। सिर्फ एक चोट के सौ रुपये लेना कहां की ईमानदारी है। मेकेनिक बोला -- श्रीमानजी । चोट करने का तो मैंने केवल एक रुपया लिया है । निन्यानबे रुपये 'चोट कहां करनी है' इस बात के लिए हैं । हमें यह जानना है, चोट कहां करें जिससे शरीर का लड़खड़ाता इंजन सक्रिया हो जाए । दस दिन के अभ्यास से आप वीतरागी तो नहीं बनेंगे किन्तु इतना जरुर जान जाएंगे कि चोट कहां करनी है और यदि इतना जान गए तो समझिए मन शान्ति का बहुत बड़ा गुर आप सीख गए ।” भाव परिष्कार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज के एक ऐसे परिवेश में रहता है जहां हिंसा, अशांति, भय और तनाव का वातावरण है। जीवन में ये बड़ी बाधाएं और समस्याएं हैं, किन्तु जहाँ समस्या है वहां समाधान भी है । धर्म और चिकित्सा क्षेत्र पृथक-पृथक हैं । मेरी मान्यता है कि एक चिकित्सक को धर्म के विषय में जितना जानना आवश्यक है उतना ही एक धर्म-गुरु को चिकित्सा के विषय में जानकारी रखना आवश्यक है । चिकित्सा करने से पूर्व रोग के कारणों को जानना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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