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१५४ प्रसन्न हूं, क्योंकि मेरी एक चिरपालिता अभिलाषा पूरी हो गई है।" ___आचार्यश्री एक मधुर मुसकान बिखेरते हुए बोले-“आज मैं भी प्रसन्न् हूँ। मेरा भी एक स्वप्न पूरा हुआ है। मैं चाहता था कि हमें कोई पहुंचा हुआ वैज्ञानिक मिले, जिसे जैन दर्शन और न्याय के बारे में बताया जाए, ताकि वह इसकी वैज्ञानिकता को समझ सकें । मैं मानता हूँ कि आप जैसे वैज्ञानिक ही जैन दर्शन की सूक्ष्मताओं को आत्मसात् कर सकते हैं। इससे समूचे मानव समाज का भला हो सकता है।"
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