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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि की अपेक्षा है । मानते चले जा रहे हैं। धर्म के क्षेत्र में सब कुछ मानने के आधार पर चल रहा है । इस मानने का कहीं चरम बिन्दु ही दिखाई नहीं पड़ता। कोई सीमा ही दिखाई नहीं देती।
आज करुणा की धारा सूख गई है । करुणा होती है तो अनेक बुराइयां स्वतः ही दूर हो जाती हैं । आचार्यश्री इस भूमि पर ऐसा कोई प्रयोग करें कि वह भारतीय धारा पुनः प्रवाहित हो जाए । बौद्धिकता ने भावात्मक स्रोत को सुखा दिया है। संवेदनशीलता को कोई अवकाश नहीं रहा। इसीलिए समाज हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया है । आचार्यश्री का अहमदाबाद-आगमन भले ही अल्पकाल का है, किन्तु वह इतना मूल्यवान होगा कि निश्चित ही कोई नया आयाम खुलेगा, नयी दिशा हमारे सामने प्रकट होगी, यही मेरी मंगल-भावना है।
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