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मंगल सूत्र दें और जो मूल है, उसे स्वीकार करें । आज के रिसर्च करने वाले विद्वानों में एक अच्छी प्रवृत्ति का जन्म हुआ है। वे किसी भी ग्रन्थ को एकदम प्रामाणिक नहीं मानते । वे इस बात का विश्लेषण करते हैं, विवेक करते हैं कि पुराना अंश कितना है और नया अंश कितना है । मौलिक कितना है और बाद में कितना जुड़ा है। काल के प्रवाह में ऐसा हुआ है कि किसी भी ग्रन्थ को मूल ग्रन्थ कहना बड़ा कठिन हो गया। एक श्रद्धालु आदमी के लिए तो अलग बात है । वह तो श्रद्धा से स्वीकार करता है किन्तु अनुसंधान करने वाले व्यक्ति के लिए यह बहुत कठिन है कि किसी पूरे ग्रन्थ को मौलिक मान ले।
___ जैन आगमों के विषय में जर्मन विद्वानों ने एक प्रयत्न किया। कुछ मानदण्ड निश्चित किए और पूरा विश्लेषण किया कि आगमों में प्राचीन पाठ कितना है
और बाद में कितना जोड़ा गया है। उन्होंने अपनी निश्चित पद्धतियां स्थापित की हैं। महाभारत के श्लोक लाख माने जाते हैं, किन्तु प्रारम्भ में उसका नाम था 'जय' । तब उसमें आठ हजार श्लोक थे। फिर 21000 श्लोक बने और उसका नाम हो गया भारत । आज हो गया महाभारत । जड़ते-जड़ते, प्रवाह मिलते-मिलते आठ हजार और इक्कीस हजार श्लोक के आज एक लाख से ज्यादा श्लोक बन गए। सब ग्रन्थों में लगभग ऐसा हुआ है। तो हमें आज विवेक करना जरूरी हो जाता है कि मूल क्या है बाद में क्या जुड़ा है । आचार्य ने कहा कि जिस व्यक्ति में सत्य की जिज्ञासा होती है और जो अपनी आत्मा का हित चाहता है, वह व्यक्ति किसी ग्रन्थ के पीछे नहीं जाता, किन्तु उसमें से खोजता है कि सूत्र क्या है ?
_ 'श्रमण सूत्र' जिनवाणी का सूत्र है और यह अनेक ग्रन्थों से संकलित है। यह एक कसौटी के साथ संकलित है कि जिसमें नवदृष्टि से जो सत्य प्रतीत होता है, उसका संकलन है। इसका पहला प्रकरण है--'मंगल सूत्र' । हम कोई भी कार्य करें तो मंगल के साथ करें । आयोजनों का प्रारम्भ भी मंगलगीत से होता है । मंगलाचरण से कार्य शुरू करते हैं, इसीलिए कि हर व्यक्ति सफलता चाहता है। असफलता कोई नहीं चाहता। सबको इष्ट है कि सफल बने । एक व्यक्ति बीज बोता है तो वह चाहता है कि यह बीज सफल बने यानी उगे।
प्रत्येक मनुष्य सफल होना चाहता है, सफल जीवन जीना चाहता है। वह जो कुछ करता है उसमें सफलता चाहता है। सफल होने के लिए वह मंगल भावना करता है, मंगल आकांक्षा करता है और मंगल कार्यारम्भ करता है। सफलता तब संभव है, जब कोई बाधा न हो । निर्विघ्न कार्य सम्पन्न हो जाए, तभी
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