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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि कुछ मौलिक विचार स्थापित हुए। धर्म के विषय में यह प्रसिद्ध धारणा हैधर्म करो, परलोक सुधर जाएगा। धार्मिकों को वर्तमान की कोई चिन्ता नहीं, केवल परलोक को सुधारने की चिन्ता है । धार्मिक व्यक्ति उपासना में विश्वास करता है, चरित्र में विश्वास कम करता है । नैतिकता का आचरण आवश्यक नहीं माना जाता । नैतिकताविहीन धर्म भी चलता है । अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से बहुत सारे प्रबुद्ध विचारक व्यक्ति सम्पर्क में आए और पारस्परिक आदान-प्रदान में कालतीत और सामयिक-दोनों प्रकार की सचाइयों को समझने का अवसर मिला। अणुव्रत के मंच पर सभी धर्मों और विचारधाराओं के लोग आने लगे
और सभी को सुनने का अवसर मिलता गया। उससे समन्वय की दृष्टि को बहुत बड़ा बल मिला। मैं दर्शन का विद्यार्थी रहा । जैन दर्शन को पढ़ा। साथ-साथ अन्य दर्शन भी पढ़े। अनेकान्त को पढ़ने के कारण अन्य दर्शनों के प्रति अन्यत्व का भान नहीं रहा । सत्य सत्य है, फिर उसे किसी भी दर्शन ने अभिव्यक्त किया हो । यही दृष्टि निष्पन्न हुई । अब मेरे सामने दर्शन दर्शन है, सत्य सत्य है, और सब भेद गौण हैं।
एक बार मुझे प्रतिश्याय हुआ और वह बिगड़ गया। एलोपैथी और आयुर्वेदिक इलाज कराए पर कोई लाभ नहीं हुआ। स्थिति चिन्तनीय बन गई। फिर प्राकृतिक चिकित्सा का योग मिला । मैं स्वस्थ हो गया। एक प्रेरणा जागी। लूई पूने को पढ़ा, और भी प्राकृत चिकित्सा की बीसों पुस्तकें पढ़ीं। वहीं से मेरे योग जीवन का प्रारंभ हुआ। आसन और प्राणायाम के साथ-साथ ध्यान की रुचि भी जागृत हुई। मैंने ध्वनि चिकित्सा का भी प्रयोग किया । उदात्त स्वर में बीज-मंत्रों की ध्वनि करने पर मैं कुछ हास्यास्पद भी बनता रहा, फिर भी कोई अन्तःप्रेरणा काम कर रही थी। मैं उस प्रयत्न को छोड़ नहीं सका । आचार्यश्री की मुझ पर अनन्त करुणा रही । मैं जो काम करता, उसमें उनका अनुमोदन और प्रोत्साहन मिल जाता । आचार्यश्री ने स्वयं प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग किया। आसन, प्राणायाम और ध्यान के प्रयोगों का ही उन्होंने सर्वात्मना समर्थन किया। धीरे-धीरे उन सबकी जड़ें हमारे संघ में गहरी होती चली गईं। ___ मैं इसे निसर्ग ही मानता हूँ कि मेरे मन में क्रूरता की अपेक्षा करुणा अधिक प्रवाहित है। कोई भी व्यक्ति अपने में क्रूरता न होने का दावा नहीं कर सकता। करुणा और क्रूरता-दोनों धाराएं हर व्यक्ति में प्रवाहित होती रहती हैं-कोई बड़ी और कोई छोटी । असमर्थ वर्ग के प्रति समर्थ वर्ग के अतिक्रमणों की चर्चा
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