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अतीत का अनावरण
१०५ की तात्कालिक क्रियान्वित में मेरा विश्वास रहा है, इसलिए किसी भी कार्य को अधर में लटकाए रखना मेरी प्रकृति में नहीं था। निबन्ध लिखने का कार्य शीघ्र सम्पन्न हो गया। यह ‘अहिंसा' शीर्षक से एक लघु पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुआ। अहिंसा के सम्बन्ध में आचार्य भिक्षु के विचार बहुत मौलिक हैं । शुद्ध साध्य की सिद्धि के लिए शुद्ध साधन होना जरुरी है । इस सिद्धान्त पर आचार्य भिक्षु ने बहुत बल दिया। मेरा अभिमत है कि इस सिद्धान्त पर बल देने वाले
और इस पर तार्किक पद्धति से विश्लेषण करने वाले भारतीय मनीषियों में आचार्य भिक्षु का स्थान अग्रणी है । महात्मा गाँधी भी इस क्षेत्र में अग्रणी रहे हैं । 'अहिंसा' पुस्तिका उनके पास पहुँची। उन्होंने उस पर कई टिप्पणियां भी लिखीं और आचार्य भिक्षु के बारे में उनके मन में एक जिज्ञासा भी जागी।
इन दिनों हमारे धर्म-संघ को प्रबुद्ध लोग रूढ़िवादी मानते थे । दूसरे सम्प्रदाय के लोग कुछ सैद्धान्तिक प्रश्न उपस्थित कर तेरापंथ को व्यवहार को विघटित करने वाला बतलाते थे। इस स्थिति में हम एक वैचारिक अवरोध का अनुभव कर रहे थे । आचार्यश्री के मन में उस अवरोध को मिटाने की तड़प जागी । उन्होंने आचार्य भिक्षु के सिद्धान्तों को दर्शन की भाषा और शैली में प्रस्तुत करना शुरू किया । मुझे प्रारम्भ से ही यह सौभाग्य मिला है कि मैं उनकी हर कृति में उनके साथ रहा । जयाचार्य को आचार्य भिक्षु का भाष्यकार होने का सौभाग्य मिला तो मुझे आचार्य तुलसी का भाष्यकार होने का सौभाग्य मिला और साथ-साथ आचार्य भिक्षु का भाष्यकार होने का सौभाग्य भी मुझे उपलब्ध हुआ। आचार्यश्री ने “जैन सिद्धान्त दीपिका' नामक एक संस्कृत ग्रन्थ लिखा । उसके एक अध्याय में आचार्य भिक्षु के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। दर्शन के स्तर पर सूत्र की शैली में आचार्य भिक्षु के सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने का यह पहला प्रयत्न था । एक दिन डा० सतकोड़ि मुखर्जी को मैंने यह अध्याय सुनाया। उसे सुनकर डॉ० मुखर्जी ने कहा-"यह बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। इतने दिन प्रकाश में क्यों नही आया? खेद है, आचार्य भिक्षु मारवाड़ में जन्में । यदि वे जर्मनी में जन्मे होते तो उनका महत्त्व इम्युअल कान्ट से कम नहीं होता।" डॉ० मुखर्जी के विचारों से मुझे एक सन्तोष का अनुभव हुआ।आचार्य भिक्षु के जिस दृष्टिकोण को आचार्यश्री तुलसी दार्शनिक शैली में प्रस्तुत कर रहे हैं और मैं जिसका भाष्य कर रहा हूँ, वह दृष्टिकोण सारयुक्त और वर्तमान की समस्या को समाधान देने वाला है। प्रारम्भ से ही मेरी यह दृष्टि रही कि जो दर्शन या धर्म वर्तमान समस्या का समाधान
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