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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि
१०१ क्या? वे हमारे संघ से 'कोतवाल' कहलाते थे। वे अनुशासन की क्रियान्विति का पूरा ध्यान रखते थे । बड़े जागरुक व्यक्ति थे । मेरा तर्क बहुत साफ था। फिर भी उनके गले नहीं उतरा । वे आचार्यश्री के पास पहुंचे, सारी घटना आचार्यश्री के सामने रख दी। आचार्यश्री ने मुझे बुलाकर कहा- 'तुम वहां क्यों बैठे'? मैंने अपना तर्क फिर दोहराया । आचार्यश्री को मेरा तर्क मान्य नहीं हुआ। उन्होंने मुझे बहुत कड़ा उलाहना दिया। मैने विनम्रभाव से उसे सुना और सहा । मैं कुछ भी नही बोला । मैं मन ही मन सोचता रहा—मेरा कोई प्रमाद नहीं हुआ। मैंने कोई गलती नहीं की। शिवराजजी स्वामी ने अपने आवेश के कारण मुझे फंसा दिया और आचार्यवर ने भी उनकी बात को मानकर मुझे उलाहना दे दिया। यह प्रतिक्रिया लम्बे समय तक मेरे मन पर होती रही । मैं काफी समय तक इस घटना को अपने मन से नहीं निकाल सका । यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। पर मेरे लिए यह बड़ी बात इसलिए बन गई कि मेरी भावना पर दोहरी चोट पहंची । मैं कल्पना नहीं करता था कि आचार्यश्री की इतनी प्रियता होते हुए भी अकारण ही उनसे इतना कड़ा उलाहना सुनना पड़ेगा। दूसरी बात, मेरे मन पर एक छाप थी कालगणी के व्यवहार की। मैंने सुना था---पूज्य कालगणी को आचार्यों से कभी उलाहना नहीं मिला। मेरे मन का भी संकल्प था कि मैं भी कभी आचार्यवर से उलाहना नहीं सुनूंगा । मेरा संकल्प टूटता-सा लगा, इससे मुझे बहुत आघात पहुंचा। ___मैं कोई प्रमाद न करूं, कभी उलाहना न सुनें, किसी के प्रति कोई अनिष्ट चिन्तन न करूं, अध्ययन में किसी से पीछे न रहूं- इन छोटे-छोटे संकल्प-सूत्रों ने मेरी चेतना के जागरण में योग दिया, ऐसा मैं अनुभव करता हूं । जीवन-निर्माण में छोटी-छोटी बातें बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रतिक्रमण के पश्चात् मैं मंत्रीमुनि श्री मगनलाल स्वामी के पास गया । उन्होंने सहजभाव में दो बोल कहे, जो मेरी अहंकार-मुक्ति की साधना मे संबल बन गए। उन्होंने कहा-'विद्या का और गुरु-कृपा का अहंकार नहीं होना चाहिए । हम मुनि हैं। हम किस बात का अहंकार करें ! मांगना बहुत छोटा काम है। हम रोटी के लिए दूसरों के सामने हाथ पसारते है, फिर अहंकार किस बात का? न जाने कितनी बार यह जीव बेर की गुठली बनकर पैरों से रौंदा जा चुका है । फिर अहंकार किस बात का?' इन छोटे-छोटे बोलों ने मन की गहरी परतों को छू लिया । अहंकार मेरी मृदुता पर कभी आक्रमण नहीं कर सका।
वि० सं० २००१ का चातुर्मासिक प्रवास मैंने सरदारशहर में किया।
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