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________________ ____ मैं कुछ होना चाहता हूं दुनिया नष्ट हो जाए। यह भी कोई श्रम है? आज हजारों-हजारों वैज्ञानिक अनेक प्रकार के वायरस' बनाने में लगे हुए हैं। एक बार ऐसा हुआ। एक कार्यालय में वायरस का एक डिब्बा पड़ा था, वह खुल गया। उसमें से कीटाणु फैले और सैकड़ों आदमी मर गए। वे वायरस युद्ध के प्रयोजन से नहीं, किसी और प्रयोजन से खोजे गए थे। किन्तु आज हजारों-हजारों वैज्ञानिकों और श्रमिकों का श्रम लग रहा है, बड़े-बड़े कारखाने चल रहे हैं जिनका प्रयोजन यही है कि ऐसे भयंकर वायरस पैदा किए जाएं जिससे कुछ क्षणों में ही समस्त मानवजाति को नष्ट किया जा सके। अब होने वाला युद्ध अणुशस्त्रों से नहीं लड़ा जाएगा। वह लड़ा जाएगा गैसों और कीटाणुओं से । विभिन्न प्रकार के कीटाणु बनाए जा रहे हैं, जिससे विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकें। युद्ध के मैदान में एक प्रकार के कीटाणुओं का विस्फोट किया जाएगा और सारे सैनिक भयंकर जुकाम से पीड़ित हो जाएंगे। उस स्थिति में शस्त्र चलाना उनके वश में नहीं रहेगा। वे नाक पोंछते ही रह जाएंगे। न जाने कितने प्रकार के वायरस पैदा किए जा रहे हैं! मूर्छा लाने वाले वायरस, बीमारियां पैदा करने वाले वायरस, दस्त लगाने वाले वायरस आदि-आदि। इनका उपयोग युद्ध क्षेत्र में होगा, इसीलिए वैज्ञानिक इनके उत्पादन में लगे हुए हैं। यह भी कोई श्रम है? कर्मण्यता है? जिससे मनुष्यजाति का कल्याण न हो, वह वास्तव में कोई कार्य नहीं है। वह कर्मण्यता नहीं है। बोधिधर्म चीन गए। वहां के सम्राट ने कहा-मैंने भगवान बुद्ध के उपदेशों के अनुसार जनहित के अनेक कार्य किए। मैंने कुएं खुदवाए, बगीचे लगाए, प्याऊ लगाई, जनता का दु:ख दूर करने का प्रयास किया। क्यों महाराज! ये सारे पुण्य के ही तो कार्य हैं? बोधिधर्म बोले-महाराज! ये सब कार्य उल्लासकारी हैं, कल्याणकारी नहीं। कल्याणकारी कार्य है शील का आचरण। तुम शीलवान बनो, समाधि का आचरण करो, प्रज्ञा का आचरण करो। यह सब कल्याणकारी है। यह कल्याणकारी श्रम है। तुमने उल्लासकारी श्रम किया है, कल्याणकारी नहीं। ___ आज दुनिया में विनाशकारी श्रम चल रहा है। यह इसीलिए कि लोगों ने ध्यान छोड़ दिया। चित्त को पवित्र और निर्मल बनाने वाले उपायों को छोड़ दिया। ध्यान कोरी एकाग्रता नहीं है। ध्यान का प्रयोजन है--चित्त को निर्मल बनाना। चित्त में जमे हुए कषाय के मैलों को धो डालना। चित्त को इतना निर्मल बना दिया कि उसमें कोई शत्रुता का प्रतिबिम्ब न रहे। भेद का प्रतिबिम्ब न रहे। उसमें तर्क का प्रतिबिम्ब भी न पड़े। चित्त इतना निर्मल बन जाए कि उसमें कोई कलुषता रहे ही नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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