SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ मैं कुछ होना चाहता हूं जापानी लोगों ने ध्यान के द्वारा मनोबल पाया है और अनुशासन पाया है। अनुशासन का इतना विकास किया कि जीवन का विसर्जन हंसते-हंसते कर देते हैं। इतना अनुशासन कि वे काम कभी बन्द नहीं करते। वे हड़ताल करते हैं पर काम बंद नहीं करते। हड़ताल का प्रतीक है हाथ पर काली पट्टी बांध देना। यह क्रम दसों दिन तक चलता है पर काम कभी बंद नहीं होता। यह अनुशासन कहां से विकसित हुआ? काम करने की प्रखरता कहां से आई? यह सब एकाग्रता और ध्यान से प्राप्त हुआ है। जिस राष्ट्र के नागरिक ध्यान नहीं करते, वे शक्ति-सम्पन्न कभी नहीं हो सकते। आज का प्रत्येक वैज्ञानिक, जो गहराइयों में डुबकियां लगाता है, वह कम ध्यानी नहीं है। बिना ध्यान या एकाग्रता के नए तथ्य उद्घाटित नहीं होते। ध्यान की एक ही पद्धति नहीं है, एक ही प्रकार नहीं है। अनेक पद्धतियां हैं, अनेक प्रकार हैं। कुछ पद्धतियां अभ्यास करने से हस्तगत होती हैं और कुछ अनायास, अपनी पूर्वकृत योग्यताओं से उतर आती हैं। न्यूटन बहुत बड़ा वैज्ञानिक था। एक बार घोड़े पर चढ़कर जा रहा था। चढ़ाई आई। वह घोड़े से नीचे उतरा। लगाम हाथ में लेकर चल रहा था। दिमाग में कोई प्रश्न उभरा। उसे सुलझाने लगा। विचारों के जाल में उलझता गया। गति धीमी हो गई। घोड़ा मंदगति से चलते चलते ऊब गया। सर हिलाया। लगाम निकल गई। घोड़ा भागता हुआ घर आ गया। न्यूट न घोड़े की लगाम पकड़े अभी भी उसी गति से चल रहा था। उसे पता ही नहीं चला कि घोड़ा भाग गया है और उसके हाथ में केवल लगाम है। घर पहुंचा। घोड़े के बांधने के लिए तैयार हुआ। ध्यान बदला। उसने देखा, हाथ में लगाम है, घोड़ा तो है ही नहीं। घोड़ा अस्तबल में बंधा हुआ है। क्या इसे हम एकाग्रता नहीं कहेंगे? उसका मन सभी विषयों से हटकर एक ही विषय में लग गया। यह एकाग्रता है। चेतना का एक ही प्रवाह में प्रवाहित हो जाना एकाग्रता है। कोई भी व्यक्ति गहरी समस्या में उलझता है तब वह ध्यान की स्थिति में चला जाता है। गहरी एकाग्रता सधे बिना सूक्ष्म सत्य का ज्ञान नहीं हो सकता।। ___ शक्ति का विकास और एकाग्रता का विकास ध्यान के द्वारा ही हो सकता है। हमारे पास दो शक्तियां हैं-एक है ज्ञान की शक्ति और दूसरी है क्रिया की शक्ति। 'एक है ज्ञानात्मक शक्ति और दूसरी है क्रियात्मक शक्ति। इन दोनों शक्तियों का विकास ध्यान के द्वारा हो सकता है। इन शक्तियों के विकास में तीन बाधाएं हैं-शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और प्रभाव की बीमारी । जब शरीर बीमार होता है तब ज्ञानात्मक और क्रियात्मक शक्तियां सो जाती हैं, ठंडी पड़ जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy