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________________ ७० मैं कुछ होना चाहता हूं को संकल्प में बदल दो। वह इतनी शक्तिशाली बन जाए कि वह कवच बन जाए, वज्र-पंजर बन जाए। इतना होने पर न बाहर का प्रभाव पड़ सकता है और न भीतर का प्रभाव पड़ सकता है। दोनों प्रभाव आते हैं. परस्पर टकरा कर चले जाते हैं। अपना प्रभाव नहीं दे पाते। जब कवच और वज्रपंजर का निर्माण हो जाता है तब भीतरी शक्तियों का या बाहरी शक्तियों का कितना ही आक्रमण हो, भीतर में कुछ भी प्रभाव नहीं हो सकता। प्रश्न होता है कि संकल्प को दृढ़ बनाने का उपाय क्या है? इसका उत्तर है कि एकाग्रता के अभ्यास से संकल्प दृढ़ बनता है। जैसे-जैसे एकाग्रता की शक्ति का विकास होता है, संकल्प-शक्ति दृढ़ होती जाती है। श्वास-प्रेक्षा एकाग्रता का अभ्यास है। जिसने श्वास को देखना प्रारंभ कर दिया, उसने मन की शुद्धि का क्रम शुरू कर दिया। हम लड़ना नहीं जानते। लड़ने की हमारी पद्धति दूसरी है। दुनिया में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जिसके मन में विकल्प न आए, बुरे विचार न आए, चंचलता या अशुद्धि न आए। बुरे विचार या विकल्प आते ही साधक निराश हो जाता है और सोचता है, यह क्या? इतने दिनों तक अभ्यास किया, कुछ भी फल नहीं मिला। आठ-दस दिन हो गए, दो-चार महीने या वर्ष दो वर्ष हो गए ध्यान करते-करते, पर विकल्पों का तांता टूटता ही नहीं, वैसे ही उनका प्रवाह चल रहा है। लगता है, ध्यान धोखा है। इसमें कोई सार नहीं है। आज से ध्यान को तिलांजलि देता हूं। आगे बढ़ने का या विकल्प से छुटकारा पाने का यह निराशायुक्त विचार उपयुक्त नहीं है। जब तक भीतर का खजाना पूरा खाली नहीं हो जाएगा तब तक विकल्पों का तांता कैसे टूट सकता है? इतने बड़े भंडार को खाली होने में एक-दो वर्ष तो क्या, अनेक वर्ष लग सकते हैं। किसी व्यक्ति का भंडार यदि कम भरा है तो खाली होने में अधिक समय नहीं लग सकता।। बुरे विचारों या विकल्पों से छुट्टी पाने का एकमात्र-मार्ग है-ध्यान । जो व्यक्ति एकाग्रता का अभ्यास करता है। उसमें इतना अन्तर जरूर आ जाता है कि वह आने वाले विकल्पों में उलझता नहीं। विचार या विकल्प आते हैं, वह द्रष्टाभाव से उन्हें देखता है। वे चले जाते हैं। बुरे विचार आएं तो आने दें, प्रारम्भ में उन्हें रोकें नहीं। चित्त को श्वास पर टिका दें। श्वास को देखने लग जाएं। इधर बुरा विचार चल रहा है, उधर श्वास-दर्शन चल रहा है। प्रारम्भ में बुरा विचार शक्तिशाली होगा, श्वास-दर्शन कमजोर होगा। जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ेगा, द्रष्टाभाव का विकास होगा तब विचार-शून्यता की स्थिति प्राप्त हो जाएगी। बुरे विचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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