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________________ श्वास पर अनुशासन यह गलत श्वास है। सही श्वास है दीर्घश्वास। इसे लेना हम नहीं जानते। जो पचास-पचास वर्षों को पार कर चुके हैं, जो जज हैं, वकील हैं, डॉक्टर हैं वे भी सही ढंग से श्वास लेना नहीं जानते। बड़ी अजीब कहानी है हमारे समाज की, हमारे विज्ञान की कि जो पाठ पहली कक्षा में पढ़ाया जाना चाहिए था, वह पाठ जीवन भर नहीं पढ़ाया जाता, नहीं पढ़ा जाता। पहला पाठ उचित रूप से नहीं पढ़ा जाता, नहीं पढ़ाया जाता, इसलिए बाद में पढ़ाये जाने वाले सारे पाठ खतरनाक बन जाते हैं, सताने वाले बन जाते हैं। यदि पहला पाठ ठीक ढंग से पढ़-पढ़ा लिया जाता है तो आगे के सारे पाठ अधिक लाभदायक बन जाते हैं। तात्पर्य यह है कि जो आदमी सही ढंग से श्वास लेना सीख जाता है, वह अपने जीवन में बहुत सफल होता है, फिर चाहे वह किसी भी क्षेत्र में रहे। व्यक्तित्व का निर्माता है सही श्वास और व्यक्तित्व का विघटक है गलत श्वास। इसी परिप्रेक्ष्य में तुलसी अध्यात्म नीडम्' ने एक परिकल्पना की है कि आज के प्रत्येक आदमी को जीवन विज्ञान का पाठ पढ़ाया जाए। प्राय: सभी विद्यालयों, शोध संस्थानों, एजुकेशनल इन्स्टीट्यूटों में अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं। विद्यार्थी उन विषयों में निष्णात होकर निकलते हैं, पर जीवन विज्ञान का बच्चा अत्यन्त उपेक्षित जीवन जी रहा है। उसे कोई यह भी नहीं पूछता-क्यों बच्चे प्यास तो नहीं लगी है? कौन पिलाए उस प्यासे बच्चे को पानी? और सबको अतिरिक्त भोजन परोसा जा रहा है, लूंस-ठूस कर खिलाया जा रहा है, पर इस भूखे-प्यासे बच्चे की ओर आंख उठाकर देखने के लिए किसी के पास समय नहीं है। बच्चा अत्यन्त उपेक्षित, उपेक्षित और उपेक्षित है। जो आदमी जीवन-विज्ञान को नहीं पढ़ता, उसमें निष्णात नहीं होता वह समस्याओं से कभी मुक्ति नहीं पा सकता। फिर स्थिति आती है कि वह दूसरे के अधिकारों को, संपत्ति को हड़पने की चेष्टा करता है। और-और अनेक बुराइयां उसमें आती हैं। एक डॉक्टर जा रहा था। एक युवक दौड़ा-दौड़ा आया और बोला-धन्यवाद डॉक्टर साहब, आपने मेरी भाभी का सफल इलाज किया. उसके लिए धन्यवाद देने के लिए आ गया। डॉक्टर ने पूछा-तुम्हारी भाभी एकदम स्वस्थ हो गई? युवक बोला-हां, डॉक्टर साहब! वह समस्त रोगों से मुक्त हो गई। रोगों से ही नहीं इस संसार से मुक्त हो गई। डॉक्टर बोला-फिर धन्यवाद कैसे? . डॉक्टर साहब! उसका वारिस मैं हूं। उसकी सारी संपत्ति मुझे मिल गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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