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________________ प्रस्तुति मनुष्य में तीन दुर्बलताएं हैं-क्रूरता, विषमता, स्वभाव की जटिलता । इन तीनों के परिष्कार सूत्र हैं-करुणा का विकास, समता का विकास, कषाय-नियमन का विकास। दूसरे शब्दों मेंक्रूरता समाप्त हो और समता जागे । विषमता समाप्त हो और समता जागे । आवेश समाप्त हो और सहिष्णुता जागे। यही 'मैं कुछ होना चाहता हूं' का प्रतिपाद्य है। हूं' के आगे है 'होना' इसका एक मात्र साधन है-ध्यान । ध्यान का अर्थ है-चेतना के प्रति जागना और चेतना का साक्षात्कार करना। पहले जागृति और फिर साक्षात्कृति। चेतना के विहरण-क्षेत्र के आधार पर निर्णय होता है कि मैं 'इच्छा-पुरुष' हूं या 'प्राण-पुरुष' हूं या 'प्रज्ञा-पुरुष' हूं। कहां है' के द्वारा कौन हूं' का निर्णय होता है। जब चेतना नाभि के ऊपर नासाग्र तक विहरण करती है तब 'प्राण-पुरुष' प्रगट होता है। जब चेतना भृकुटि के ऊपर सक्रिय होती है तब 'प्रज्ञा-पुरुष' प्रगट होता है और जब चेतना नाभि के आसपास सक्रिय रहती है तब 'इच्छापुरुष' प्रगट होता है। जैसे ज्योतिष का सौरमंडल है, वैसे ही अध्यात्म का सौरमंडल है। ज्योतिष में नौ ग्रह माने जाते हैं, अध्यात्मक में भी नौ ग्रह हैं। इन सबका प्रभाव होता है। मनुष्य की विशिष्टता के चार हेतु हैं१. प्राणशक्ति के साथ चेतनाशक्ति को विकसित करने का सामर्थ्य । २. चेतना के नए-नए आयामों के उद्घाटन का सामर्थ्य । ३. चेतना के विकास का बोध । ४. चेतना-बोध की क्रियान्विति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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