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________________ मैं कुछ होना चाहता हूं मेरी अपनी घटना है । मैं छोटा बच्चा था। दस वर्ष का भी नहीं था । मैं अपने परिवार वालों के साथ कलकत्ता गया । जन्मा था टमकोर में । बहुत छोटा-सा गांव । कलकत्ते जैसे बड़े शहर को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। परिवार वालों के साथ बाजार में गया। एक दुकान पर माल खरीदने के लिए वे रुके । मैं दुकान में पड़े विविध पदार्थों को देखता रहा । इतनी चीजें ! इतनी बड़ी दुकान !! कहां है टमकोर में? मैं एकटक देखता रहा । परिवार वालों ने माल खरीदा और चलते बने। मैं देखता ही रह गया । ध्यान टूटा तो देखा कि परिवार वाला कोई सदस्य नहीं है । मैं बिछुड़ गया। कोई नियति का योग था, आचार्य तुलसी के चरणों में आना था, भटकते-भटकते घर आ गया। मेरे जैसा अबोध बच्चा, जो भटक गया था, सुरक्षित घर आ गया, यह भी एक दैवी घटना ही थी । ३२ एकटक देखना या भान भूल जाना - यह बच्चे में ही नहीं होता, बड़े-बड़े व्यक्ति भी इसके जाल में फंसे रहते हैं । जब कोई प्रिय रूप, स्वर या गंध सामने आता है तब वे व्यक्ति भान भूल जाते हैं और अपने बोध को भी खो देते हैं। यह प्रकृति उनको चेतना के द्वारा सही स्वभाव का अनुभव नहीं होने देती । प्रियता और अप्रियता की बात छूटती है जब लीनता का क्षेत्र बदल जाता है । यह रसहीनता नहीं, किन्तु जो व्यक्ति अपने भीतर महान रस को खोज लेता है, उसकी सारी लीनता बदल जाती है, आकर्षण बदल जाता है I 1 प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला विचित्र प्रकार के आनन्द का अनुभव करता है। जब वह श्वास- प्रेक्षा, शरीर - प्रेक्षा और प्रकंपन - प्रेक्षा में लीन होता है तब बाहर की लीनता अपने आप छूट जाती है । उसका कालबोध बदल जाता है, दिशा बोध बदल जाता है। एक घंटा प्रेक्षा करते हैं और अनुभव होता है कि मानो दस मिनट बीते हों । यह इसलिए होता है कि लीनता बदल जाती है। भीतर का रस जब जागता है तब सारी स्थितियां बदल जाती हैं। अध्यात्म रसहीन बनाने की प्रक्रिया नहीं, किन्तु अपने भीतर छिपे हुए महान रसों को उद्घाटित करने की प्रक्रिया है । जिसने अपने भीतर के रस की महान तरंगों का स्पर्श नहीं किया, वही व्यक्ति बाहर के पदार्थों को रसमय और भीतर के रसों को नीरस मानता रहेगा । किन्तु जिस दिन वह इस समुद्र की तरंगों का एक बार भी स्पर्श कर लेगा, उसके रस की सारी धारणा बदल जाएगी और तब भीतर का रस-स्रोत फूट पडेगा । इन्द्रिय शदि के दो उपाय पतिपादित किए गए हैं For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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