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________________ २८ मैं कुछ होना चाहता हूं इन्द्रिय-शुद्धि हो सकती है, इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। ___ हमारी दुनिया में बहुत सारे नियम हैं। पदार्थ का अपना नियम है और अध्यात्म का अपना नियम है। प्रत्येक विज्ञान का अपना नियम होता है। पदार्थ की सूक्ष्म प्रकृति और संरचना के नियमों का हमें पता चल जाए तो कोई बात असंभव नहीं रहती और यदि नियमों का पता न चले तो प्रत्येक बात असंभव ही होती है। __ मैं यहां बोल रहा हूं। ऊपर बैठे सैकड़ों लोग सुन रहे हैं। न मैं उन्हें देख पा रहा हूं और न वे मुझे देख पा रहे हैं। फिर भी सुनने में कोई बाधा नहीं है। सौ वर्ष पहले यह असंभव लगता था, आज यह संभव हो गया है। आज इतना संभव हो गया कि दुनिया के किसी कोने से कोई बोलता है और विश्व के सारे लोग सुन लेते हैं। सूक्ष्म नियम का पता चला और यह असंभव बात भी संभव हो गई। ___ अध्यात्म सूक्ष्म नियमों की खोज है। अध्यात्म केवल धर्म का ही विज्ञान नहीं है। वह प्रकृति का सूक्ष्मतम गुत्थियों को सुलझाने वाला विज्ञान है। उसके द्वारा प्रकृति का सूक्ष्मतम अध्ययन होता है, विमर्श होता है और सूक्ष्म नियमों का पता लगाया जाता है। प्रारम्भ में युवक ने प्रश्न उपस्थित किया था कि अध्यात्म अरस की ओर ले जाता है। यह ठीक है, क्योंकि अध्यात्म में प्रवेश करते ही आपको रसों को छोड़ने की बात कही जाती है। उसमें सबसे ज्यादा बल जीभ को वश में करने के लिए दिया जाता है, इन्द्रिय-विजय की बात कही जाती है। यह क्यों? बहुत गहरा नियम खोजा गया कि मनुष्यों को सबसे अधिक भटकाने वाली बात है-कामुकता। सेक्स भटकाता है। फ्रायड ने ठीक कहा था कि सेक्स मनुष्य की मूल मनोवृत्ति है। वह समूचे जीवन पर हावी रहती है। आज के शरीरशास्त्रियों और मानसशास्त्रियों ने कहा है कि और सब तनाव सामयिक होते हैं किन्तु सेक्स का तनाव निरन्तर बना रहता है। कामुकता बहुत बड़ा खतरा है। उस खतरे को मिटाने के लिए अध्यात्म ने पहली बात कही कि जब तक कामुकता को कम नहीं किया जाएगा तब तक मानसिक अशांति का प्रश्न कभी समाहित नहीं होगा। कामुकता कम करने के लिए जीभ का संयम अनिवार्य है। आश्चर्य होता है कि जीभ और कामुकता का क्या संबंध? जब तक हम नियम को नहीं जानते तब तक हमें सम्बन्ध का पता नहीं चलता। जब सूक्ष्म नियम ज्ञात हो जाता है तब सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। उत्तराध्ययन सूत्र का एक पद्य हैं"रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवंति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी।।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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