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मैं आत्मानुशासन चाहता हूं
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दो बातें होती हैं-(१) समस्या का सामना करना (२) समस्या से परेशान होना। ये बिलकुल दो बातें हैं। मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान की गरीबी में और समस्याओं में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि समस्या को सुलझाने के लिए जिस प्रकार के चित्त की प्रेरणा चाहिए वह नहीं है, परेशान करने की प्रेरणा काम कर रही है। अगर हम इन दो बातों को अलग कर सकें, पानी में आकर पड़ी हुई गंदगी को साफ कर सकें, पानी को फिल्टर कर सकें, तो पानी बिलकुल साफ होगा। हम इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि समस्याओं का समाधान खोजने में, समस्याओं से जूझने में जिस प्रकार के चित्त की आवश्यकता है वैसा हमारा चित्त नहीं है। जाते हैं समस्या का समाधान करने के लिए किन्तु परेशान चित्त के कारण एक और समस्या पैदा कर लेते हैं।
बच्चा जिद्द में है और उसकी जिद्द छुड़ाने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। यदि प्रेम से काम होता है तो बात बन जाती है किन्तु मेरी बात नहीं मान रहा है-आया, आवेश में दो-चार चांटे जड़ दिए, सुलझाना जहां का तहां रहा, बात और उलझ गई।
पड़ोसी से बातचीत करनी है, शांति के साथ करनी है-समझौते की बात कही, आवेश आया, लाठियां उठ गईं। बहुत सारी यथार्थ की समस्याओं को भी हम अपने द्वारा उलझा लेते हैं।
हम ऐसे चित्त का निर्माण करें जिससे समस्याओं का सामना करने में वह सक्षम हो। वह कभी समस्याओं से परेशान न हो।
___इस प्रकार के चित्त के निर्माण के लिए आत्मानुशासन अपेक्षित है। आत्मानुशासन तब घटित होता है जब व्यक्ति में शरीर, श्वास, प्राण, वाणी और मन-इन पांचों पर अनुशासन करने की क्षमता विकसित होती है। इन सब अनुशासनों का घटक है ध्यान ।
हम एक आत्मानुशासन को विकसित करने की दिशा में प्रस्थान करें।
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