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________________ मैं मनुष्य हूं (२) मनुष्य की विशिष्टता का एक हेतु है-चेतना विकास का बोध और उसकी क्रयान्विति। प्राणी जगत में चेतना है, किन्तु चेतना का विकास का बोध नहीं है और करने की क्षमता भी नहीं है। उसके पास कोई साधन भी नहीं है। मनुष्य ने निरन्तर अपनी चेतना का विकास किया है। उसे चेतना-विकास का बोध भी है और उसके पास विकास का साधन भी है। दो स्तर हैं-एक है-संवेदन का स्तर और दूसरा है-चेतना का स्तर। प्राणियों में प्रधानतया संवेदना होती है। वे संवेदन के स्तर पर जीते हैं। उनमें संवेदना अधिक और ज्ञान कम होता है। मनुष्य में संवेदना और ज्ञान-दोनों होते हैं। संवेदना पर नियंत्रण करना और ज्ञान का विकास करना-यह मनुष्य की मौलिक विशेषता है। पशु केवल संवेदन करता है। वह सुख-दु:ख भोगता है, किन्तु उसमें ज्ञान का विकास नहीं है। सुख-दु:ख के अनुभव से परे जा सके वैसी चेतना का विकास उसमें नहीं है। पशु में जो है वह सहज संयम है, किन्तु संयम का विकास नहीं है, संयम विकास की चेतना भी नहीं है। पशु के सामने चारा आएगा, खाद्य आएगा, भूख होगी तो खा लेगा। भूख नहीं है तो नहीं खाएगा। किन्तु भूख होने पर भी न खाए, यह चेतना उसमें नहीं है। भूख होने पर खाना, भूख न होने पर न खाना और भूख होने पर भी न खाना-ये तीन बातें है। पशु में यह तीसरी बात नहीं है। यह सही है कि पशु भूख लगने पर ही खाते हैं, भूख के बिना नहीं खाते। पर मनुष्य की चेतना ने यह भी विकास किया है कि भूख लगने पर भी नहीं खाता और भूख न लगने पर भी खा लेता है। एक डॉक्टर ने भोज का आयोजन किया। नगर में संभ्रांत व्यक्ति भोज में सम्मिलित हुए। भोज के प्रारम्भ में डॉक्टर ने कहा-'सबके सामने भोजन परोस दिया गया है। भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व हम सब एक बात सोच लें कि हमें पशु की तरह खाना है या मनुष्य की तरह। सारे लोग असमंजस में पड़ गए। वे डॉक्टर के आशय को समझ नहीं सके। डॉक्टर ने अपने कथन को स्पष्ट करते हुए कहा-पशु की तरह खाने का तात्पर्य है जितनी भूख है उतना खाना और मनुष्य की तरह खाने का तात्पर्य है, भूख न होने पर भी खाते जाना। ___ भूख होने पर भी न खाना-मनुष्य की अपनी विशेषता है। उपवास का विकास इसी मौलिक विशेषता के आधार पर हुआ है। भूख है, फिर भी आदमी दो दिन का उपवास, पांच-दस दिन का उपवास, चालीस-पचास दिन का उपवास कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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