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५. इष्टोपदेश : १०५
१९. यज्जीवस्योपकाराय, तद्देहस्यापकारकम्।
यद्देहस्योपकाराय, तज्जीवस्यापकारकम्॥ ____ जो जीव के लिए उपकारक है, वह देह के लिए अपकारक है। जो देह के लिए उपकारक है, वह जीव के लिए अपकारक है।
२०. इतश्चिन्तामणिर्दिव्य, इतः पिण्याकखण्डकम।
ध्यानेन चेदुभे लभ्ये, क्वाद्रियन्तां विवेकिनः॥ एक ओर दिव्य चिंतामणि रत्न है तथा दूसरी ओर खली का टुकड़ा है। यदि ध्यान के द्वारा दोनों प्राप्त हों तो विवेकी व्यक्ति किसको ग्रहण करेगा?
२१. स्वसंवेदनसुव्यक्तस्तनुमात्रो निरत्ययः।
अत्यन्तसौख्यवानात्मा, लोकालोकविलोकनः॥ .
आत्मा लोक-अलोक का ज्ञाता-द्रष्टा है। वह अत्यन्त सुखस्वभाव-वाला, शरीरप्रमाण, नित्य तथा स्वसंवेदन से सुव्यक्त है, अनुभूत है।
२२. संयम्य करणग्राममेकाग्रत्वेन चेतसः।
आत्मानमात्मवान् ध्यायेदात्मनैवात्मनि स्थितम्॥ मन की एकाग्रता से इन्द्रियों का नियमन कर आत्मवान् आत्मा में स्थित, आत्मा का, आत्मा के द्वारा ध्यान करे, अनुभव करे।
२३. अज्ञानोपास्तिरज्ञानं, ज्ञानं ज्ञानिसमाश्रयः।
ददाति यत्तु यस्यास्ति, सुप्रसिद्धमिदं वचः॥
अज्ञानी की उपासना अज्ञान देती है और ज्ञानी की उपासना ज्ञान देती है। यह प्रसिद्ध वचन है कि जिसके पास जो होता है, वह वही देता है। २४. परीषहाद्यविज्ञानादास्रवस्य
निरोधिनी। जायतेऽध्यात्मयोगेन, कर्मणामाशु निर्जरा॥
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