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________________ ७ समस्या है आकर्षण चक्षुष्मान् ! ___आकर्षण शब्द की ओर है तो शब्द मनुष्य को कभी सुख देगा, कभी दुःख। शब्द का आकर्षण छूटने पर ही मनुष्य आंतरिक आनंद का अनुभव कर सकता है। आकर्षण रूप की ओर है तो रूप उसे कभी सुख देगा, कभी दुःख। रूप का आकर्षण छूटने पर ही मनुष्य आंतरिक आनन्द का अनुभव कर सकता है। गंध, रस और स्पर्श के लिए भी यही चिन्तन और यही भाषा उपयुक्त है। अरति से मुक्त वही हो सकता है, जो शब्द, रूप आदि का उपयोग करता है किन्तु उनसे आकृष्ट नहीं है । जो खींचता है वह मनोबल का ह्रास करता है। आकर्षण एक ही दिन में नहीं टूटता, उसके लिए अपेक्षित है दीर्घकालिक साधना। इस सत्य को महावीर ने इन शब्दों में प्रकट किया—जो दीर्घकाल से अनाकृष्ट होने की साधना कर रहा है, उसे अरति क्यों सताएगी विरयं भिक्खू रीयंतं, चिररातोसियं, अरती तत्थ किं विधारए । 1 जून, 1995 जैन विश्व भारती 34 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003078
Book TitleApath ka Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
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