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Pos अग और मूल का विवेक
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चक्षुष्मान् !
विवेचन करो, गहरे में उतर कर देखो—समस्या का मूल क्या है ?
जो सामने है, उसका समाधान करना आवश्यक समझते हो और करते भी हो।
बहुत बार समाधान असमाधान बन जाता है। इसलिए कि बढ़ती हुई शाखा और प्रशाखा को काट दिया किन्तु जड़ को नहीं काटा ।
समस्या का मूल है मोह, मूर्छा । चेतना मूर्छा से ग्रस्त है।
तुम शामक टिकिया लेकर तनाव मिटाना चाहते हो । क्या तनावमुक्ति संभव होगी?
तनाव-मुक्ति का क्षणिक आभास और अधिक तनाव को उभार देगा।
अग्र का समाधान न करो, यह वक्तव्य नहीं है। वक्तव्य यह है—अग्र पर रुको मत, मूल तक पहुंचो । अग्र की समस्या के साथ मूल की समस्या का समाधान करो। यह समस्या के समाधान का सर्वांगीण दृष्टिकोण है। केवल दीया मत जलाओ। ध्यान केन्द्रित करो-आँख की ज्योति सुरक्षित रहे ।
आँख की ज्योति और विद्युत् की ज्योति दोनों हों तभी हो सकता है अंधकार की समस्या का समाधान ।
समाधान की इस सर्वांगीण भाषा में महावीर ने कहा थाअग्गं च मूलं च विगिंच धीरे । हे धीर ! तू अग्र और मूल का विवेक कर । 1 अक्टूबर, 1993 राजलदेसर
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अपथ का पथ
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