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मैत्री क्यों ?
५.७
की शरण ली, अर्हत् और सिद्धों की शरण ली, उसने अपने आपको बचा लिया, अपनी मंत्री को विकसित कर लिया । वह सुरक्षित रह गया । सहयोग रोटी का भी लेना होता है । रोटी की शरण में नहीं जाते । रोटी हमारे लिए एक उपयोगिता है । पानी भी एक सहयोग है, वैसे ही दवा और जड़ीबूंटी भी एक सहयोग बन सकती है किन्तु ये सब पदार्थ शरण नहीं हो सकते। आदमी इनकी शरण में नहीं जाता ।
मैत्री का सबसे पहला लाभ है स्वास्थ्य और दूसरा है सुख । मंत्री की बहुत बड़ी निष्पत्ति है सुख । वह व्यक्ति सुखी रह सकता है जिसके मन में मैत्री की ऊर्मियां उठ रही हैं, उत्ताल तरंगें आकाश को छू रही हैं, वही सुख का अनुभव कर सकता है। जिसके मन में मंत्री का विकास नहीं, वह दिन में न जाने कितनी बार दुःख का अनुभव करता है । कोई सामने आया, भृकुटि तन जाती है, आंखें लाल हो जाती हैं और शरीर गरमा जाता है । और भी न जाने क्या-क्या होता है ! ये सारी निष्पत्तियां हैं शत्रुता की । जिसने मंत्री का विकास किया, वह स्थायी सुख का अनुभव करेगा । स्थायी सुख होना बहुत बड़ी बात है ।
बच्चा रास्ते में बैठा मिट्टी से खेल रहा है । बड़ा सुन्दर और शांत । आकृति से भी ज्यादा सुन्दर । उस आकृति से एक विशेष प्रकार का भाव टपक रहा था । सुन्दर बनता है मनोभाव । जिसके मन में मंत्री का भाव होता है वह आकृति से भद्दा होता हुआ भी सुन्दर बन जाता है । सुकरात कितना सुन्दर बना था अपने मनोभावों के कारण ! कितना भद्दा आदमी था सुकरात, किन्तु हजारों आदमी उसके पीछे रहते थे। अपने विचारों और भावनाओं से और विकासशील मैत्री के कारण उसके चेहरे पर इतना सौन्दर्य छा गया कि सारा भद्दापन दब गया। गांधीजी सुन्दर नहीं थे; किन्तु एक पश्चिमी विचारक ने लिखा कि गांधी जैसा सुन्दर व्यक्ति दुनिया में कोई जन्मा नहीं । उनकी आकृति पर विराट् मैत्री टपकती थी । बच्चा भी आकृति से न जाने कैसा था किन्तु प्रकृति से, अपनी विशाल आध्यात्मिक मंत्री से बहुत रमणीय लग रहा था। राजा का मन अटक गया । वह भी उधर ही जा रहा था । राजा स्वयं सवारी से उतरा और बच्चे के पास जाकर बोला -- बच्चे ! मिट्टी से क्यों खेल रहे हो ! क्या खिलोने नहीं हैं ? जरूरत हो तो मैं ला दूं ! बच्चे ने अपने शरीर की ओर संकेत करते हुए कहा- "यह मिट्टी का पुतला है, मिट्टी से बना है और मिट्टी में मिलना है तो इससे नहीं तो और किससे खेलूं ? राजा सुनकर दंग रह गया। बड़ी विचित्र बात है । राजा ने कहा - 'तुम बड़े अच्छे हो, एक काम करो, तुम मेरे साथ आओ ।' बच्चा दो मिनट गम्भीर हो गया, सोचा, फिर बोला - 'तुम्हारे साथ तो आ सकता हूं, रह सकता हूं, किन्तु मेरी दो शर्तें हैं। मैं सोऊं और तुम जागते
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