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________________ मैत्री क्यों? प्रेक्षा-ध्यान अकेला रहने की कला है। जो अकेला रहना जानता है वह मैत्री कर सकता है। भीड़ में रहने वाला कभी मैत्री का विकास नहीं कर सकता। मैत्री क्यों आवश्यक है ? एक प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर अपने आपमें खोजना है। आदमी खोजता रहता है, सत्य की खोज करता रहता है । अध्यात्म भी सत्य की खोज का मार्ग है और विज्ञान भी सत्य की खोज का एक मार्ग है। दोनों के माध्यम से सत्य खोजा गया और आज भी खोजा जा रहा है। उद्देश्य कुछ भिन्न है। विज्ञान के माध्यम से सत्य की खोज हो रही है । इसका उद्देश्य है भौतिक विकास और सुविधा । पदार्थ का अधिकतम विकास कैसे किया जा सकता है ? कैसे कम्प्यूटर युग में पहुंचा जा सके और कैसे अणुशक्ति का प्रयोग किया जा सके ? कैसे जनता के लिए अधिकतम सुविधा के साधन जुटाए जा सकें--यह है विज्ञान की खोज का उद्देश्य । भौतिक विकास और सुविधा-ये दो उद्देश्य बन जाते हैं। इनका विकास हुआ है । परिणाम कुछ विपरीत आया है। पदार्थ बहुत बढ़े, सुविधाएं बहुत बढ़ीं, अन्तरात्मा कुछ घटी है, कुछ सिकुड़न आई है। भय बढ़ा है, आंतक बढ़ा है और शत्रुता बढ़ी है। शीत युद्ध बढ़ा है। ये सारी निष्पत्तियां सामने हैं। अध्यात्म और सत्य की खोज की निष्पत्ति है मैत्री। प्रेक्षा-ध्यान का एक सूत्र है जो अविचल गाथा के रूप में गाया जाता है-'अप्पणा सच्च मेसेज्जा, मेत्ति भूएसु कप्पए ।' स्वयं सत्य खोजो और सबके साथ मैत्री करो। सत्य की खोज और उसकी निष्पत्ति होगी मैत्री। जिस सत्य की खोज की निष्पत्ति मैत्री नहीं होती, वह सत्य की खोज मनुष्य के लिए लाभदायक नहीं होती, कल्याणकारी नहीं होती । मैत्री हमारे जीवन की सबसे बड़ी सुख की फसल है। जिस व्यक्ति ने इसकी बुआई की है और जिस व्यक्ति के खेत में यह फसल पनपी है वह व्यक्ति सदा स्वस्थ रहता है, शांति और सुख का अनुभव करता है। जिसने इसका बीज नहीं बोया, वह बीमार रहता है और अशांति व दुःख का अनुभव करता है। ___ मेडिकल साइंस यह मानता है कि बीमारी का कारण है कीटाणु, विषाणु और जीवाणु । क्या आदमी जहां रहता है उस वातावरण में बीमारी के कीटाण हैं ? आदमी जहां जीता है और श्वास लेता है वहां वायरस तो नहीं है ? वहां जर्स भी है और वायरस भी है तो फिर आदमी बीमार क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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