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________________ जागरूकता : यथार्थ का स्वीकार १६७ हम जागरूकता को समझे। जागरूकता का अर्थ है-यथार्थ का स्वीकार । दुर्बल आदमी कभी जागरूक नहीं बन सकता। शक्तिशाली व्यक्ति ही जागरूक बन सकता है । जिसमें सचाई को स्वीकार करने की शक्ति होती है वही जागरूक हो सकता है । जो अपनी बीमारी को समझता है, अपनी कमजोरी को जानता है, अपनी पीड़ा को जानता है और यह स्वीकार करता है कि यहां पीड़ा है और मुझे उसका उपचार करना है, वह आदमी जागरूक होता है। __ जागरूकता का अर्थ है - सत्य का स्वीकार और पीड़ा का उपचार । प्राकृत साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण कहानी है। उज्जयिनी का शासक था जितशत्र और सोपारक देश का शासक था सिंहजीत । दोनों मल्लविद्या के शौकीन थे। दोनों मल्लों को पालने में रुचि रखते थे । उज्जयिनी के राजा के पास एक बलशाली मल्ल था। उसका नाम था अट्टण । वर्ष में एक बार मल्लकुश्ती का आयोजन होता। विभिन्न देशों से मल्ल आते । कुश्तियां होती और अन्त में अट्टण की जीत होती । इससे मल्ल अट्टण की प्रशंसा के साथ ही साथ उज्जयिनी के शासक का यश भी बढ़ता । सोपारक राजा के मन में भी यश की भावना जागी और उसने भी मल्लकुश्ती का आयोजन प्रारम्भ किया। अट्टण भी वहां गया । उसने अनेक मल्लों को पछाड़ दिया। वह विजयी हुआ। सोपारक के शासक की निन्दा हुई । उसने पराजय के प्रतिकार का उपाय सोचा । एक बार उसने एक युवक को देखा । वह हृष्टपुष्ट था। महाराजा सिंहजीत ने उसे मल्लविद्या में निपुण करना चाहा । सारा दायित्व स्वयं पर ले लिया। उसे सारी सुविधाएं दो गईं। मल्लविद्या के सारे गुर उसे सिखाए गए । वह अत्यन्त बलशाली और निपुण हो गया । मल्लकुश्ती का आयोजन हुआ। अट्टण भी आया । कुश्ती हुई और नौजवान मल्ल ने अट्टण को धूल चटा दी । सर्वत्र सोपारक देश की जय जयकार होने लगी। अट्टण अपनी पराजय पर झंझला उठा। उसने भी उपाय सोचा और एक नौजवान युवक को पास में रखकर उसे मल्लविद्या में निष्णात कर डाला । इसका नाम रखा फलिह । कुश्ती का आयोजन हुआ। दोनों मल्ल, उज्जयिनी का मल फलिह और सोपारक का मल्ल मच्छिय आपस में गुत्थमगुत्था हो गये । पूरा दिन उछाड़-पछाड़ में बीता। कोई नहीं जीता । सायं कुश्ती दूसरे दिन के लिये स्थगित हो गई । सायं मच्छिय मल्ल के पास राजा गया और पूछा-कहीं चोट लगी हो तो बताओ। उसका पूरा उपचार कर लो, ताकि कल फिर पूरे जोश के साथ अखाड़े में उतर सको। उसमें अहंकार भी था और प्रमाद भी। उसने कहा- कहां है दर्द ! कल मैं उसको पराजित कर दूंगा। उज्जयिनी का राजा भी अपने मल्ल फलिह के पास गया । फलिह से पूछताछ करने पर उसने बताया कि अमुक स्थान पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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