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जीवन की पोथी
साक्षात्कार कर लिया वह आध्यात्मिक है, पर हम कहेंगे जिसने अनित्यता का अनुभव कर लिया और उस अनुभव को जी रहा है, वह आध्यात्मिक व्यक्ति है । जिसने अनित्यता का अनुभव नहीं किया वह भौतिकवादी है। या यों कहें कि वह भौतिकता में जी रहा है।
दूसरा तत्त्व है अशरणवाद । महाराजा श्रेणिक ने अनाथि मुनि से पूछा-यौवन अवस्था में मुनि कैसे बन गए ? मुनि ने कहा- 'मैं अनाथ था । मुझे कोई नाथ नहीं मिला।' श्रेणिक ने कहा- 'मैं नाथ बनता हूं। मेरे साथ चलो । महलों में आनन्द से रहो।' मुनि बोले-'राजन् ! तुम स्वयं अनाथ हो, तुम स्वयं अशरण हो, मेरे नाथ कैसे बनोगे ? मुझे शरण कैसे दोगे ?' राजा चौंका। पूछा, मैं अनाथ कैसे ? इतने बड़े साम्राज्य का अधिपति और अनाथ ! यह असंभव बात है। मुनि ने कहा--राजन् ! मैं अत्यन्त धनाढ्य पिता का पुत्र था। संपदा की कोई कमी नहीं थी । मुझे चक्षु-वेदना हुई। असह्य पीड़ा। उस पीड़ा को बंटाने वाला कोई नहीं मिला । उस बीमारी से मेरे में अशरण की चेतना का जागरण हुआ और मुझे यह साक्षात् अनुभव हुआ कि जगत् में कोई नहीं है शरण देने वाला । मैं अशरण हूं। बाह्य पदार्थ शरण देने में असमर्थ है। मैंने शरण अपने आप में खोजा। संकल्प किया और वेदना मिट गई। अशरण की चेतना ने मुझे शरण खोने की दिशा में प्रस्थित किया और मैं मुनि बन गया। अब मुझे और किसी की शरण की आकांक्षा नहीं है।
आध्यात्मिक व्यक्ति वही होता है जिसमें अशरण की चेतना जाग जाती है। जब तक इस चेतना का जागरण नहीं होता तब तक आदमी पदार्थ में ही शरण खोजता है ।
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं-परार्थाभिमुख और स्वार्थाभिमुख । आध्यात्मिक वह होता है जो स्वार्थाभिमुख होता है, अपने प्रति अभिमुख होता है । जो पराभिमुख होता है, वह भोतिक होता है । वह पदार्थाभिमुख होता है । वह प्रत्येक समस्या का समाधान पदार्थ में खोजता है। उसकी अभिमुखता पदार्थ की ओर होती है। जिस ओर अभिमुखता होगी, उसी ओर लक्ष्य होगा, उसी ओर गति होगी। यदि हमारा ध्यान स्वार्थाभिमुख है तो हम प्रत्येक समस्या का समाधान अपदार्थ में खोजेंगे । स्वार्थाभिमुखता आत्माभिमुखता है। यह अध्यात्म की सरल परिभाषा है । यह व्यवहारगम्य बात है, अतिवाद नहीं, दूर की कल्पना नहीं है । जब अनित्यता का अभ्यास जाग जाता है, तब कहीं भी मोह या मूर्छा जागेगी तो उसका समाधान हो जाएगा।
अवंती नगरी । धन नामक श्रेष्ठी। उसकी पुत्री का नाम था भट्टा । आठ भाइयों के बीच एक बहिन । पिता ने सभी से कह दिया- इसे कोई 'तू'
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